Monday, 24 February 2014

निष्ठुरी चिज

मुक्तक

टुहाँर मन्रख्नी महिन मन परल विचार का बा ?
रात दिन घरिघरि यादले भरल विचार का बा ?

स्वार्थी पन हो या पागल मन हो खै थाहा निहो 
टुन्हख दुई साथ देख्ख दिल जरल विचार का बा ?


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