Sunday, 31 August 2014

दिदी बाबुन सम्झती 'लेख अइनु अग्रासन

गजल

दिदी बाबुन सम्झती 'लेख अइनु अग्रासन ।
मनक पिर बिर्सती 'लेख अइनु अग्रासन ॥

बट्या हेर्ती बैठ्ल रहो झट् आइटु मै दिदी ।
घाम पानी नई कति 'लेख अइनु अग्रासन ॥

भेत घाँट कर्ना आश लेख् दिदी बाबुन से ।
काम काज रती रती 'लेख अइनु अग्रासन ॥

ढ्वाग सलाम कर्ती गोन्ड्री बिछाख देली ।
सुखक दुखक  जती'लेख अइनु अग्रासन ॥


राम पछलदङग्याँ अनुरागि

हेकुली ८ दाङ

आव मलेसिया





Monday, 25 August 2014

छोक्रा नाच

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अँट्वारी पर्व एक चर्चा

अँट्वारी पर्व ः एक चर्चा
—छविलाल कोपिला
अँटवारी, माघ ट्यूहार पाछक थारू जातिनके दुस्रा भारी ट्युहार मान्जाइठ् । यिहेसे फेन अँट्वारीहे थारू जातिनके महत्वपूर्ण व्रत पर्वके रुपमे लेजाइठ् । मुले अँट्वारीके बारेमे विभिन्न मतमतान्तर फेन हुइटी आइल बा । ठाउँ अनुसार चाल चलनमे विविधता बा ओ एकर पृष्ठभूमिके बारेमे विभिन्न धारणा आगे आइल बिल्गाइठ् । यिहेसे एकर निश्चित तिथि, मिति हुइना जरुरी रहल बातके फेन बहस हुइटी आइल बा ।
अँट्वारी खास कैके भादो महिनामे परठ् मुले कौनो साल कुवाँरमे अँट्वारी मन्लक फेन देखजाइठ् । मने जारलेसे फेन अँट्वारी ढेरहस् अष्टिम्की पाछेक दुस्रा अँट्वार अथवा कुश अमाँवस (कुशे औंशी) पाछेक पहिल अँट्वारहे अँट्वारी मन्ना चलन बा । 
अँटवारी फेन कोइ बर्का अँटवारी किल मानठ् कलेसे कोइ–कोइ पाँच अँटवार अँटवारी व्रत रठाँ । पाँच अँट्वार पाछे ठिक्के डशिया परठ् । असौंक अँटवारी हेर्न हो कलसे भादो महिनक १५ गतेहे बर्का अँटवारी मन्न ओ पाँच अँटवारी मनुइयन भादो २२, २९ गते ओ कुवाँर महिनक ५ ओ १२ गते व्रत बैठ्ना विल्गाइठ् । असिके पाँच अँटवरिनके व्रत बैठना चलनसे फेन कुश अमाँवसके पहिल अँटवार हे अँटवारी मन्न चलनके प्राण बल्गर विल्गाइठ् । 
कुछ मनैनहे धारणा हिन्दु नारीने तीज पाछक अँटवारहे अँटवारी मन्न चलन बा कैह्के कठाँ लकिन यी ओत्र सान्दर्भिक नै हो । का करे कि पहिले आजुक नन्हें सक्कु जातिनके मिश्रित बसाइ नै रहे थारु समुदायमे ओ ओइनके तीजसे फेन कौनो सम्बन्ध फेन नै रहे । उहेसे तीजहे आधार बनैना जरुरत नै हो । यद्यपि पहिल अँटवार ढेरहस् तीजके पाछे परठ् । यी एकठो संयोग किल हो । कबो–कबो ते तीजक दिन फेन परल रहठ् । पछिल्का समयमे यी तर्क व्यापकता पाइल विल्गाइठ् ओ मनैं दुइ विधामे परके कारदुई–तीन अँटवारी माने पर्न समस्या देख परठ् । 
मुले, तीज मान्के अइना अँटवारीसे कौनो कौनो पाँच अँटवरियनके अँटवारी प्रभावित बनादेहठ् । असिके हेरेबेर हमार पुर्खन यी सक्कु चाजहे ध्यानमे धैके अमाँवस्के पहिल अँट्वारहे बर्का अँट्वारीके रुपमे लेलक हुई कना तर्क बल्गर बिल्गाइठ् । कौनो–कौनो साल पितरपक्ष या समय हान परठ् ते पाँच अँट्वरियनके अँँटवारी फेन बिगर जैठिन् ओइने सक्कु अँटवारी माने नै पैठाँ ओ अँटवारी फेन दुइठो या तीनठो हुइलागठ् । 
प्रकृति पुजक थारू समुदाय खास कैके यी पर्व दिन (सूरज, सूर्य) के पूजा कैना मानजाइठ् । यकर उत्पत्ति भदौ महिनक अँधरियामे हुइल रहे । जौन दिन कुश अमावँसके पहिल अँट्वार रहे । अँटवारहे रविबार फेन कठाँ । रवि कलक सुरज । जब भयावन अँधरिया रातमे सुरजके जन्म हुइल । तबसे यी संसार ओज्रार हुगैल् कना किम्बदन्ती बा । प्रकृतिप्रति विश्वास कैना थारु समुदाय, सूरज ओज्रारके प्रतीक हुइलक ओरसे फेन यकर पूजा ओज्रारदाताके रुपमे कैलक हुइट् । सूरज अँधार चीरके ओज्रार कराइठ् । जिहीसे मनैनहे किल नाही विश्वके सक्कु प्राणी जगतहे काम कैना लिरौसी बनाइठ् । 
ओसिक ते यी पर्व मन्नके आउर मिथक फेन जोरल् बा । श्रीमद्भागवत् पुराण अनुसार यी व्रत सबसे पहिले सन्तनु राजाके पुत्र राजकुमार देवदत्त अँट्वारी व्रत रहलाँ । उहाँ सूर्य उपासक हुइट् । ऊ भोज वियाह फेन नै कैलाँ । राजकुमार देवदत्त चारभाइ रहिंट् । बर्का देवदत्त, भीष्मपितामह, पाण्डु ओ विदरु गुप्ताके लर्का देवदत्त, सुनितीके लर्का भीष्मपितामह अन्ध्रा ओ पाण्डु पाण्डा रोग हुइलक ओरसे पाण्डु नामाकरण हुइलिन् । धार्मिक दृष्टिमे हेर्बाे सूर्य पूजा कर्बाे ते पाण्डु रोग मेटजाइठ् कना प्राचीन धारणा बा । ते यी व्रत पहिले राजकुमार देवदत्त रहलाँ, तब पाण्डु, कुन्ती, माद्री, कर्ण ओ भीम ओकर दादु राजा परिक्षित सूर्य हेतु श्रीमदभागवत सुनैलाँ । यी अब व्रत रैह्के आपन बाबक सोचके उद्धारके लग श्रीमदभागवत सुनैलाँ, ओकरवाद सब द्यौंटा फेन यी महान पर्व माने लग्लाँ । बरे–बरे मुनिलोग सूर्यके उपासकके रुपमे सूरजके जन्म दिन अँट्वारहे अँट्वारी माने लग्लाँ ओ आझ फेन यी ट्युहार चलन चल्टीमे बा । कना बात वीरबहादुर चौधरी आपन किताब ‘वीरबहादुरके ऋतुमे उल्लेख कैले बटाँ । 
दोसर मिथक महाभारत कथासे जोरल बा । पाँच पाण्डव मध्ये सबसे बल्गर भेवाँ (भीम) रहिंट् । जब कौरव ओ पाण्डवके लडाइ पर्लिन । उहे समय भेंवाँ रोटी पकाइ टहिंट् । ऊ रोटी पकैटी–पकैटी टावामे छोरके चल्गैलाँ । जब लराइसे भुँखासल अइला ओ उहे एक्के करे पकाइल रोटी खाके आपन पेट भरैलाँ कना तर्क बावई । कलेसे केक्रो तर्क भेंवाँ थारू राजा दंगीशरणहे लराइमे सघैलक ओ सबसे बल्गर हुइलक ओरसे भेंवाँहस् बल्गर हुइना संकल्पसे साथ अँटवारीमे भेवाँक पूजा कैलक विचार फेन जनमानसमे बा । अँट्वारीमे सबसे पहिले अक्केकरे रोटी पकाके भेवाँहे पुज्ठाँ कना किम्वदन्ती फेन बा । मुले, ठाउँ अन्सार थारू समुदायमे फेन अलग–अलग चलन प्रक्रिया रहल बा । 
अँट्वारी व्रत बैठ्ना ट्युहार हुइलक ओरसे शच्चिरके दिनभर मच्छरी मर्ना आउर टिना टावन खोज्ना कैजाइठ् । मच्छरीक् सुखौरा पहिलेहें फेन बनाइल रहठ् । अँटवारीमे मच्छरी बिशेष मान्जाइठ् । आउर सरशिकार नैरहठ् । सागसेवाँरमे पोंइ, ठुसा लगाके रहठ् । जब सन्झा हुई ते ‘डटकट्टन’ (दर) के नाउँसे कुछ मीठ–मीठ खैना रिझाइल् रहठ् । व्रत बैठुइयन यी रातके मुर्गी बस्नासे पहिले खैठाँ । यदि खैनासे पहिले मुर्गी बोल्गैलाँ कलेसे ऊ खाई नै मिलठ् । कोइ खालेहल कलेसे ऊ अँट्वारी व्रत रहे नैपाइठ् । या ऊ डुठेह्रु हुजाइठ् कना मान्यता बा । 
व्रत बैठुइयन अँट्वारके दिन बिहाने लहाके भुख्ले घरक बहरी या अँग्नामे गाइक गोबरसे सुग्घरके गोब्रैठाँ । आझुक दिन कोरे आगीमे सक्कु खाना पकाजाइठ् । थारु समुदायमे भन्सामे रहल् भित्तरके आगी नै बेल्सठाँ । पुरान आगी चोखा नै मान्जाइठ् । उहे ओरसे गनयारी काठ घोटके निकार चोखा आगीले रोटी पकैठाँ । 
अन्डिक रोटी, गोहुँक रोटी, पक्की, अम्रुट्, केरा, तरुल, उस्नल् घुइया, मिठाई दारल् मोर्सक भूजा ओ मिठैहा पानी खास मान्जाइठ् । नोन, बेसार, मिर्चा पहिल दिन बर्जित रहठ् । 
जब सक्कु चाज पकाके तयार हुइटे बिहान गोब्रैलक ठाउँमे काठक बैठ्ना (पिर्का या कौनो बैठ्ना वस्तु) पर बैठके आपन प्रक्रिया आगे बर्हैठाँ । खैनासे पहिले अगयारी (अग्यारी) देना चलन बा । अगयारी कलक गाई गोबरसे गोब्रैलक ठाउँमे आगिक अङ्ठा धैके ओँह्पर सर्री धूप, मस्का ओ खाइक लग तयार कैलक बस्तु (अन्डिक रोटी, गोहुँक रोटी, पक्की, अम्रुट्, केरा, तरुल, उस्नल घुइया, मिठाई दारल मोर्सक भूजा ओ मिठैहा पानी) सक्कु अक्केमे सानके चर्हैनाहे कठाँ । 
सूरज फेन आगीके मुख्य श्रोत हो उहेसे सबसे पहिले आगीहे प्रसाद ग्रहण करैना चलन आइल् । अगयारी देके तीन चो दाहिन ओ तीनचो बाउँ पाजरसे पानीले पर्छना फेन चलन बा । कोइ–कोइ पाँच या सात फेरा फेन सर्छठाँ । ओकर पर्से आपन चेली–बेटिनके लग फेन अग्रासनके रुपमे सक्कु चाज निकर्ना चलन बा । निकारके तब बल्ले खैना चलन बा । खैना क्रम दिन रहटसम किल चलठ् । दिन बुर्टीकिल खैना काम बन्द हुजाइठ् ।
दोसर बिहानके भात, खँरिया, फुलौरी, पोंइ मिलाइल ठुसा, सुखौरा मच्छरी, घुइयक टिना, भेन्डी लगाके विजोर संख्यामे टिनाटावन बनाजाइठ् । मच्छिक सुखौरा विशेष मान्जाइठ् मुले शिकार भर फर्हार कैना पाछे किल मारजाइठ् । जब तयार हुई ते काल्हिक नन्हें लहाके अगयारी देके फेन सक्कु चाज अलग–अलग दोना–टेपरीमे ‘अग्रासन’ कर्ह जाइठ् ओ बल्ले खैना शुरु हुइठ् । खानपिन ओराई ते कार्हल् अग्रासन आपन चेली बेटिन घर देहे जैठाँ । असिके अग्रासन देहे गैलेसे आपन चेलीबेटिनसे आपसी सद्भाव बर्हठ् । अग्रासन चेलीबेटिन बहुत अस्रा कैले रठाँ । ओइने बहुत मानमर्जाद फेन कैठाँ । थारू समुदायमे मानमर्जाद जाँर–मद ओ सरशिकार खवाके कैठाँ । असिके अँटवारी पर्व ओराइठ् । 

सन्दर्भ सामग्री
सत्गौवाँ, वीरबहादुर (२०६६), हमार पवित्र टयूहार अँटवारी । लौवा अग्रासन । 
सत्गौवाँ, वीरबहादुर (२०६८) हमार पवित्र टयूहार अँटवारी, । वीरबहादुरके ऋतु । दाङ, देउखुरी साहित्य तथा सांस्कृतिक मञ्च ।

Saturday, 23 August 2014

हम्र भुख मुवटी सरकार राहत झट् चहल

गजल

हम्र भुख मुवटी सरकार राहत झट् चहल
बाढी पिडित जिना आधार राहत झट् चहल


दुख पिर भुक् पियास कट्रा सहि हम्र आमि
जीवन बचिना हमन आहार राहत झट् चहल


पहिलक जसिन घर बास हमा समाज निहो
क्षेती पुर्ति सहित संसार राहत झट् चहल


रूइटी बत्या हेर्थी सद्द सरकारी मनैन के
बोली नहि काम बिचार राहत झट् चहल


बैठ्ठल बाटी कैयाँ कुचिल अन्धार रातम
लैव जिन्दगी व अज्जार राहत झट् चहल


राम पछलदङग्याँ अनुरागि
हेकुली ८ दाङ
आव मलेसिया



Thursday, 21 August 2014

बरका सुग्घर हुर्डुङ्ग्वा नाच कबु नाई छोरना हो

मुक्तक
बरका सुग्घर हुर्डुङ्ग्वा नाच कबु नाई छोरना हो
यिहि हे बचाईक लग जुगार कुछु जोरना हो

थारु भाषा लिखे ओ पर्हे नाई जन्थु कना मनैन भेतैथु यहाँ
अपन् भाषा हे हेल्हा करुईयन ताँरा लैके झोरना हो


              सन्देश दहित
       जनकीनगर खर्गौली कैलाली

देशम जन्ता मुवत सरकार कहाँ गैल

गजल 
देशम जन्ता मुवत सरकार कहाँ गैल  
जन्ता पानीम बुरत सरकार कहाँ गैल

भोट माङ्ग बेर गफ कर्लो बरा बरा
गाउँम जनता कुहत सरकार कहाँ गैल

नात गास बाट नात बैठ्ना बास हमा
भुख प्याटम घुमत सरकार कहाँ गैल

राहत पैना कैह्या कति गरीब जनता 
सडक आज झुलत सरकार कहाँ गैल

राम पछलदङग्याँ अनुरागि
हेकुली ८ दाङ
आव मलेसिया



Tuesday, 19 August 2014

अ‍ै दादु भैया,दिदि बाबु चलि धोती,लेहङगा चोलिया लगाई

गजल
अ‍ै दादु भैया,दिदि बाबु चलि धोती,लेहङगा चोलिया लगाई 
काहाँ सम सुतबि, आब ते उठि आपन भेषभुषा जगाई ।

बहुत हुगैल औरे संस्कृति के पाछे लागत ओ बिकृति नानत ।
काहॉ सम ननबि, आब ते उठि आपन रिति संस्कृति बचाई ।

हेरागैल हमार उ सक्कु रहनसहन,नाचकोर ओ गीतबास ।
काहॉ सम चुमचाम रहबि, आब ते उठि कुरिती भगाई ।

बहुत बतवा सेकली अधिकार ओ पहिचान के बात । 
आब ते उठि सबजे, यिहिन बचैना बलगर बेन्हवा मगाइृ,


लेखक रबिना चौधरी

Monday, 18 August 2014

यिहे अष्टमी म ध्यार ध्यार सारी देख्नु

मुक्तक
यिहे अष्टमी म ध्यार ध्यार सारी देख्नु 
लाल पीयर कतौति कातल लेहंगा के दारि देख्नु 

दिमाग नाई पुग्लिन काहुन दिदी बहिन्यन के 
जिउ डाल ते ठिके रहिन मने चाल ऊ अनारी देख्नु

         सन्देश दहित
.  जानकीनगर खर्गौली, कैलाली 

Sunday, 17 August 2014

गीत गा गाख कनैहेँ न टिकहो गोहि हुँक्र

गजल

गीत गा गाख कनैहेँ न टिकहो गोहि हुँक्र 
कनैहेँ से आपन मन बात मङ्गहो गोहि हुँक्र 

कुछु देब्या कैख ट्वार लागि व्रत बैठ्ठी हम्र 
धेर पहर्क आपन लाग कुछु करहो गोहि हुँक्र 

बर्ष दिनि क एक फ्यारा अईथा यी टिह्वार
कनैहेँ कहल बात सक्कु जे मनहो गोहि हुँक्र

मतान घर जैना ब्याला हुइलागल तयारी होओ
झिलि मिली दिया बर्ल सँघ लगहो गोहि हुँक्र

अजित चौधरी
हलवार २ दाङ्ग

बर्त बाटो मोर लाग कान्हा हुइतु कंस ना मनहो

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मुक्तक
बर्त बाटो मोर लाग कान्हा हुइतु कंस ना मनहो 
मैया कर्थो महिन तब फे अपन ज्युक अंस ना मनहो 

सल्फला मनैन रोज्थे कैख दाइ बाबानसे गारी पैथो हुँ 
तुनक दोख्खा हमार जिल्बिल जात एक्क बंस ना मनहो 

सुमित रत्गैया

Saturday, 16 August 2014

अष्टीम्किक शुभ कामना सक्कु मैगर मैगर गोंचालीन् ! बिशेष त जन्याव ओ बठ्न्यावन् !!



गजल

च्वाखा मनले व्रत रहो पानी फे जिन् खइहो सानू!
टिक गैल म गोहिन्से अष्टिम्किक गीत गइहो सानू!!

बरा मनैन्से छुटी लर्कन रहर लग्ठा जे तै तिहार म!
लर्कन  पर्कन  संघ  - संघ  टिक लै'जइहो सानू!!

रिति बनल बा फह्रारक दिन जहोँर तहोँर लाख्या हेर्ना!
किरा काँटिक दिन आजकाल अंगत्ती घर अइहो सानू!!

यी साल अष्टिम्कि म किन्दिहे निसेक्नु लौव लौव लुगा!
ज्या बा जसिन बा यी साल अष्टिम्की म ल'गइहो सानू!!

का  कर्टो  त  दुखारिक  जिन्दगी  अस्तहेँ  बा  हामार!
जसिक - तसिक कर्ती  कर्ती अष्टिम्की क'टैहो सानु!!

यम के कुसुम्या
मानपुर २ दाङ्ग

टैइ तिहारक मुहोम आख मनैन् पुह्वाइ

मुक्तक
टैइ तिहारक मुहोम आख मनैन् पुह्वाइ
मनैन् संघ संघ सक्कु ऊ गाउँ घर कुह्वाइ
उठीवास लगाइ गाउँ सम् सान बनाइल
गरीब वनके आखीसे दैव आस चुह्वाइ

एडमिन @[381752935258400:]

VOICE OF THARUS: Paintings and dances on Krishna's day

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Tuesday, 12 August 2014

थारु भाषा)

युवा साहित्यकार सोम डेमनडौरा
युवा साहित्यकार सोम डेमनडौरा
पश्चिउ नेपालके लाग युवा साहित्यकार, मानवअधिकारकर्मी तथा पत्रकार सोमडेमनडौरा कौनो लौव नाउँ निहो । सक्कुनसे मिलनसार ओ घुलमिल कर रुचैना उहाँके बानीबाटन । बाबा ठाकुरराम चौधरी ओ डाई बुधनी चौधरी के क्वारमसे २०३७ माघ १४ गते नयाँगाउ ८, जोतपुर बर्दियाम जन्म हुइलन । उहाँ  आजकाल मेरमेह्रिक संघसस्थाम आवद्ध बाट ।
परगा राष्ट्रिय साप्ताहिक प्रधान सम्पादक, सरासर साहित्यिक त्रैमासिक प्रधान सम्पादक, टेंश, मुखपत्र प्रधान सम्पादक,  जंग्रार साहित्यिक बखेरी, नेपाल केन्द्रिय संयोजक,  डहरचण्डी प्रकाशन समूह, नेपालगञ्ज अध्यक्ष,  थारु पत्रकार संघ, बाँके सचिब,  थारु ठन्ह्वा, नेपालगञ्ज सचिब, थारु गजल मञ्च, नेपालगञ्ज संयोजक लगायत संघसस्थाम आवद्धबाट ।
ओस्टक इन्सेक सस्थामफे  संलग्न बाट । डेमनडौराके बास्तविक नाउँ सोम प्रसाद चौधरी रलसेफे उहाँ साहित्यक नाउँ सोम डेमनडौराले संसारह चिनैना प्रयास कर्टीबाट । छोटी समयम बहुट चर्चाम अइलक सोम डेमनडौरा पाछक समयम साहित्यम बहुट  सयम खर्च करटी आइलबाट । उह विषयम युवा साहित्यकार सोम डेमनडौरासे लौव अग्रसान साप्ताहिकके सम्पादक सन्तोष दहित विचम करल बातचित प्रस्तुत बा ।
आजकाल कौन कामम व्यस्त बाटी ?
ढ्यार जसिन आपन संस्थक कामम व्यस्त बाटु । मानवअधिकारक क्षेत्रम काम कनाृ हुइलक ओर्से व्यस्तता ढ्यार रहठ् । यी बाहेक आपन रहर लागल क्षेत्र साहित्य हुइलक ओर्से थारु भाषा साहित्य विकास, प्रबद्र्धन ओ संरक्षणक लाग फे आपन जाँगर लगैटी बाटु । घरक काम ट आपन ठाउँम पली बा । स्याकटसम् आपन बुह्रय सघैना कर्टी बाटु ।
कैह्यासे सुरु कर्लि साहित्यक सिर्जना कर ? 
महा कर्रा परल ट । पैल्ह जहाँ पैना टहाँ लिख्जाए । ठ्याक्क यीह सालसे सिर्जना कर शुरुवाट कर्ना कना ट आब्ब कह निसेक्ना हुइल जे ट । साहित्यम रुची हुइलक ओर्से किताबम कथा, कबिता बरा रसलेक पहर्जाए । रेडियो नेपाल क्षेत्रीय प्रसारण सुर्खेतसे हमार पहुँरा ओ ख्याल कार्यक्रम थारु भाषम सुन्मिल । उह कार्यक्रमम साहित्य बाचा हुइना ओ कबिता डब्नीभिराहुर हुइलक ओर्से मन उहरे टान्गैल । सायद उह ब्यालासे शुरु कर्नु कनाहस् लागठ् । तर ऊ ब्यालक सक्कु कबिता भर दस्ताबेज कर निसेक्नु ।
ओसिन हो कलसे त, अप्न असली साहित्यकार हुइटी ना ?
आब असली साहित्यकार ओ नक्कली साहित्यकारक बारेम ट मै नई कह स्याकम । यी म्वार लाग लउव शब्द फे हुइल । म्वार आपन व्यक्तिगत बिचार कह ब्याला साहित्यकार कलक साहित्यकार हुइट । नक्कली ओ सक्कली या असली सायद कौनो सामानक तुलना करबेर बेल्सना शब्द हो । जहाँसम् साहित्यकारक मापनक सवाल हो कलसे, मै भर आपनहँ सिकारुम ढर्ठु । बहुट चिज सिख्ना बाँकी पली बा ।
आम्हिनसम कत्रा कविता, गजल लिख्ली ट ?
शुरुवाट ट म्वार कबिता हो । पहर्ना माध्यम नेपाली हुइलक ओर्से पहिल ढ्यार जसिन नेपाली भाषम लिख्नु । पाछ भर थारु भाषम ढ्यार लिख भिर्नु । अंग्रेजीक विद्यार्थी हुइलक ओर्से दुइ चारठो अंग्रेजीम फे बा । नेपालगञ्जक बैठाईक संगसंग गजलओंर झिस्कोर गैनु । असिक गन ब्याला कबिता करिब ३०÷४० ठो, गजल ७०÷८० ठो हुई । आजकालभर कथा लिख्नाओर कलम दौरठ् ।
साहित्य विशेष कौन्व किताव (पोष्टा) निकारख्ली की नाही ?
आम्हिनसम् ट नि निकर्ल हुइटु । नेपालगञ्जसे पैल्ह निकारगैलक अग्रासनम कृष्णराज सर्बहारी दाजु लगायतक गजल सहितक कहिदेऊ गुर्वावा संयुक्त गजल संग्रहभर निकारगैल रह । ज्याकर सम्पादन मैह्य कर्नु । पत्रपत्रिकम ढ्यार छपस्याकल । आब यी ०७१ साल भिट्टर जसिक फे एकठो कथा संग्रह निकारडारम कना बल्गर आँट कर्ल बाटु हेरी ।
सुरुके सिर्जना करल कविता या गजलके कुछ हरफ याद बा कलसे  दुइ लाइन सुनि न ?
०६७ जेठ २१ गतेक एकठो गजल बेल्सटुः

सावनक एक झोंक्का म्वार छातीम मार्क गैल
बर्षौंसे साँचल मैया आझ पुरा मन फार्क गैल

मैया कर तुहँ सिखैलो भगवानहँ साक्षी ढर्क
कञ्चन म्वार मनम बिष बचन डार्क गैल

रकतक हर कोषम तुहाँरलाग म्वार प्यार बा 
शान्त तलाउक जलम बिख्रल तरंग सार्क गैल

मै बिना एकपल जीय निसेक्ना शब्द बोलो
आझ उ बोली बचन कहोंर पोक्री पार्क गैल

सायद आँधीक एक झोंक्का बन्क अइलो तुँ
तुहाँर जोश म्वार सारा जिन्गी उजार्क गैल

साहित्यम कैऐठो विधा रठा कठ, ऊ कसिन हो ना बट्वाडी न ?
जसिकहँक बैज्ञानीक ओ डिजिटल प्रबिधिक विकास हुइटी गैल ओसिहँक संसार फे साँकिर हुइटी गैल । म्वार कह खोज्लक मनै बिचार व भावनाले सेकेन्डभर लग्गु हूइटी गैल । एकठो समुदायक संस्कृति, भाषा, भेषभुषा, चालचलन सहजरुपम स्वीकर्ना ओ बेल्सना कर लग्ल । उह चिजहँ मैया कर लग्ल । आब असिक  हेर्ना हो कलसे त कबिता, कथा, उपन्यास बिधा ढ्यार बेल्साईम बा । ओसिहँक आजकाल गजल, मुक्तक, हाइकु फे जन्गरसे ठाउँ अगोट्ल बा । गीत फे एकठो साहित्य हो ।
अप्न ह, कौन विधा मन पर्ठा ?
म्वार मन पर्ना बिधा कलक कथा हो ।
यी विधा काजे मन परल ? और विधासे कुछ सजिलो बा की ?
सजिलो अप्ठ्यारो कना रुची ओ लेखनम भर पर्ना चिज हो । जस्ट महीका कथा मन परठ् ओ यम्न म्वार लेखन सिप बा कलसे कथा जो सजिलो लागठ् । तर अप्न छोटी लेखनक हिसाबम हेर्बी कलसे त हाइकु, मुक्तक, कबिता ओ गजल सजिलो हो । साहित्य भाव ब्वाकल, अर्थ परक, संरचना मिलल् ओ समाजक अंग हुइ स्याक परल् । कथा कना उपन्याससे छोटी रना तर एकठो घटनाक्रमहँ एक्क ठाउँम बरा सहज तरिकाले सिमोट्ल रना बिधा हो । कौनो घरक भन्सक बारेम बुझबेर भन्सरीयक भूमिका कथाम सहजरुले भेटा जैना हुइलक ओर्से मही कथा मन परठ् । ओसिन त सभा, गोष्ठी, कार्यक्रम ओ मनैन हालहाल टटैना बिधा गजल ओ कबिता फे मन निपर्लक भर निहो ।
अप्न साहित्यक कार्यक्रमम भाग लिह बुर्हानसे दाङ पुग्ठी, कार्यक्रमम भाग लिह, जाइवेर–आइवेर     डगरीम पैसा खर्च निहुइट ? कि आयोजकहुक्र डेठ ?
सबसे बरवार चिज इच्छा हो हेरी । तर कबुकाल यीह इच्छाहँ गोझ्या रोक्ल रहठ् । थारु समुदायक साहित्यिक समूहम पैसक कमी बा । कोष बनाई निसेक्लक अवस्था बा । उहमार आयोजक पैसा डिहसेक्ना त बातहँ निआइठ् । ड्वासर बात, सक्कु साहित्यकार हुकन्हँक हालत फे सड्ड दिन पैसा जु्टाई सेक्ना क्षमता निहुइटीन् । आपन लिखल रचना छप्नाटक छपाई निसेक्ना हालत बा । स्थानीय स्तरम प्रकाशक पैना कलक बद्रीक टोंरैया टुरहस् हुइठ् ।
साहित्य सात्यिकार हुकन्हँक बरवार सम्पत्ति हुइलक आर्से कब्ब कहाँ सुनाई मिली कना छटपटी हुइठीन् । जहोंर टहोंर से पैसा जुटाक फे हुँक्र आपन रचना सुनाई ओ सम्बन्ध ज्वार पुग्जैठ । यी पैसा स्याकटसम् आपन गोझ्यमसे जाइठ् ।
साहित्यक एक्ठो नशा हो कठ, कि अप्नह साहित्यकके नशा त नै लागल बा, नैट बुह्रानसे दाङ कसिक पुग्ठी, दाङसे राजधानी पुग्ठी पक्क फे कुछ रहस्य ट बा ना ?
साहित्यक नशा लग्ना मज बाट हो । तर यी नशा लागबेर साहित्यकारन सबकुछ भुल्जैठ कनाभर नि हो । लिखक लाग साहित्यक नशा लागक परठ् कना फे नि हो । मनक भिट्टर साहित्यक झिल्काभर आइक परठ् । कबुकाल परिस्थिति सिर्जाइठ् त केक्रो व्यवसाय फे बन्जाइठ् । साहित्य सिर्जना कर्ना समाजहँ डगर देखैना फे हो । समाज परिवर्तन कर्नाम साहित्यक बरवार भूमिका बाटीस् । औरजे साहित्य अनुत्पादक कठ, उत्पादन स्रोत यीह हो ।
रहस्य कलक साहित्यप्रतिक बरवार ओ उत्कत चाहना हो । यी बाहेक राजनीतिक दलक नेतन्हँक जसिन घुमाहुर रहस्य साहित्यकारन्हँक निरहठ् कनाहस लागठ् ।
अप्न विचारम साहित्यिक कलक काहो वट्वा डी ना ?
साहित्यक मन भिट्टरसे फुट्ना भाव हो । शब्द मार्फत एकठो आकार पाइठ् । यी मानव  समाजम हुइटी रलक, भोग्टी रलक अवस्थक चित्रण हो । जिहिंका ऐना फे कैजाइठ् । हम्र हमार समाजक एकठो महत्वपूर्ण अंग हुइटी । यीहँसे जीय, ख्याल, रुई, हाँस, झगर ख्याल, सहयोग कर लगायतक हरेक व्यवहार सिख्ठी । याकर समग्ररुप संस्थागत कर्ना, सहजरुपम देखैना माध्यम कलक साहित्य हो ।
आब्बके साहित्य कैसिन हुइना चाहि ? 
हमार थारु समुदायक साहित्य लेखन करुइया बहुट कम बाट । ढ्यार जसिन यूवा बर्ग बाट । हुँकन्हँक मनक स्वभाविक हिसाबले हुँकहनम मैया प्रेम प्रतिक झुकाब ढ्यार रठिन् । शुरुवाटी साहित्य मैया प्रेमसे ढ्यार लग्गु रठिन् । तर यी गलटभर निहो । रसरस साहित्यक लेखन परिपक्व हुइटी जाइठ् ।
यी ब्याला, हम्र हमार पहिचानक खोजी करटी । हमार समाजम आभिनटक आर्थिक क्रान्ति, राजनीतिक सचेतना, सामाजिक परिवर्तन ख्वाजल जसिन हुई निस्याकल हो । गुणस्तरीय शिक्षा ओ सभ्य समाजक जग बैठाई निसेक्ल हुइटी । समाजहँ हिंसा रहित ओ मानवताक रुप दिह निसेक्ल हुइटी । ११ बरष जनयुद्धसे उ ब्यालक पुस्ता सज्जरुपम हिंसा ओ लराई केल सिखल । समाजहँ सकरात्मक परिवर्तन व गुणोत्तर विकासम लैजैना जरुरी बा । याकरलाग पहिला अुट्किला शिक्षा व संस्कृति हो । साहित्य याकर सहारा बन स्याकठ् । उहमार, आब हमार समुदायक लाग साहित्य सिर्जना कर पर्ना जरुरी बा । बिश्व साहित्यक तुलनाम आइक पर्ना जरुरी बा । हम्र हमार भाषा बचैनाकेल नाही यीहींका बिश्वस्तरम फे चिन्हाइक लाग विकास ओ प्रवद्र्धनक जरुरी बा ।
अप्न, साहित्यकार फे पत्रकार फे यी दुनुहुइटी यी बीच म का फरक बा ?
साहित्य ओ पत्रकारिता दुनु लग्गुक क्षेत्र हो । एक औरकम सम्बन्ध बाटीन् । कुछ अन्तर भर जरुर बा । पत्रकारिता घटना बिशेषम रहीक वाकर वास्तविक खोजी, प्रचार प्रसार कर्जाइठ् । आम नागरिक व मानव समुदायहँ वाकर बारेर सुसुचित कर्जाइठ् । पत्रकारिता वास्तविकता, यथार्थता, वस्तुनिष्ठ रहठ् । तर साहित्यम ढ्यार जसिन मनक बहाव, कल्पनाशिलता, श्रीङ्गार ढ्यार बेलस्जाइठ् । हुइना ट समाजक यथार्थता ब्वालठ् तर सक्कु यथार्थता निरहठ् । उहीं लग्गुभर रहठ् ।
अन्तम, कुछ कहपर्ना बा की ?
मनक बात बट्वैना, सट्ना मौका डेली ढ्यारनक धन्यबाद । साहित्य सर्जक ह्वाए या समाजसेबी या अन्य अन्य हुकन्हँक भलाकुषारी पत्र पत्रिकाम छप्ना मै बहुट मजा प्रयास हो कना लागठ् । यिहींले केक्रोक बिचारक बारेम सहजरुपम बुझ्ना मौका मिलठ् । यी फे एकठो बहस् हो । अन्तरवार्ता अनुकरणीय फे हुई स्याकठ् ।
लउव पुस्ता हमार थारु भाषा साहित्यक विकासक लाग डँट्क लाग पर्ना बा । आपन भाषा ओ साहित्यक संरक्षणक लाग आपन आपन ठाउँसे नियमित कलम चलाई पर्ना बा । जंग्रार साहित्यिक बखेरी देश बिदेशम थारु भाषा साहित्यक विकासक लाग जौन प्रयास कर्टी बा ओम्न हाँथम हाँथ, कन्ढ्यम कन्ढा मिलाडी हम्र कहाँ पुग्बी पाँच बरष पाछ अपन्हे देख पर्जाई । अग्रासन थारु भाषक पत्रिका मध्यम एकठो  बिठा हो । यिहींका बचैना केल नाही आघ बह्रैना सक्कुन्हँक कर्तव्य हो । अग्रासनक आघ बहर्टी जाए । हर घरम पहुँरा बन्क जैटी रह ।www.tharuwan.com

Sunday, 10 August 2014

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मुक्तक

ज्या ज्या कर्ना करो नेतन पाल्या पैबी हम्र फे
हुर हुर गोजझ्या भरो नेतन पाल्या पैबी हम्र फे

जब फे ट बिना कामक कर्ठो झगर लर्ठो खुब 
कोचाकोच धरो नेतन पाल्या पैबी हम्र फे


सरस्वती थारु

बर बर भुत्ला पाल्ख दादा बन्ना कलक हो

मुक्तक

बर बर भुत्ला पाल्ख दादा बन्ना कलक हो!
कानम मुन्द्रा घाल्ख दादा बन्ना कलक हो!!

लौव पाइन्ट फे काट्कुट पार्ख न आप !
२-४ ठाउँ म टाल्ख दादा बन्ना कलक हो!!

यम के कुसुम्या
मानपुर २ दाङ्ग

Tuesday, 5 August 2014

आँखिक किच्चर कत्कटैना ब्याला भ्वाज कैदेल


थारु भाषा के गजल

आँखिक किच्चर कत्कटैना ब्याला भ्वाज कैदेल
नाँकिक स्याँप गालम फत्फटैना ब्यालम भ्वाज कैदेल ।

छुति रनहुँ पकर पकर लौला बन पथैल
जन्निक गोन्यम लत्पटैना ब्यालम भ्वाज कैदेल ।

पहर्ति पहर्ति आपन ग्वारम मजासे बिना टेक्ल
दाइ बाबा मै हत्मटैना ब्यालम  भ्वाज कैदेल ।

सफा सुग्घर हुइपर्था कना थाहाँ निरह महि
चिलुरले जाँङ्घ्या उटैना ब्यालम भ्वाज कैदेल ।

म्वार भ्वाज हुइना ब्याला रिसैना बैस आरलाहा
कुछु कैदेलसे झर्फरैना ब्यालम भ्वाज कैदेल ।

चन्द्र बिबस अनुरागि
डुरुवा ९ ड्वाङ्गपुर
हाल मलेसिया

Monday, 4 August 2014

हेरइकखन लजइना यी -थरुनीयाक टेणवा डउल

गजल 

हेरइकखन लजइना यी -थरुनीयाक टेणवा डउल 
फदकैले हजुर कहना थरुनीयाक फदकावा डउल 

चोट लगले जऊ सुम्सुम्यावेके खस्ले त उठावेके
लरम हैने छिदलाहर उ -थरुनीयाक हथवा डउल

एक दिनक रमाइलोमा सदी ढारे लिचकी आवेके
सोदाने अङ्गालो कसेके थरुनीयाक सथवा डउल

आपन काखवाक सिरहनीयामा त केश खेलावेके
यस्ने करल स्वाद स्वाद थरुनीयाक बतवा डउल

हैने देखके हैने सुनके -ककरो साङ्हे हैने डेरावेके
आपसमा सङ्ही हेरइना थरुनीयाक मतवा डउल

यी सबकोरोके हसई -या गोछ्डाके मत्रा भुलावेके
कि बैशालु उमेरवामा त थरुनीयाक जतवा डउल

Gochhada ho Gochhada

Sunday, 3 August 2014

आब कहाँ देख मिलि भेग्वा पेर्हल पौवा धालल मनै।

भावना 

आब कहाँ देख मिलि भेग्वा पेर्हल पौवा धालल मनै।
के बचादी हमार पुर्यन्या रितीरिवाज जोगैना मनै।।

कन्धमन जबिया सिर म टोपी हाँथ मन तेक्नी लेहल मनै।
गाडी घोडा कुछुनै चहठीन छबुवा लगाके आपन सुर मे नेङ्गना मनै।।

ना देखे मिलत पुर्यन्या गित बाँस ओ मिर्दनग्या मनै।
पुठ्ठ म नेहङ्गा फरीया घेचम सुत्या हाँथम तरीयाँ बाका बिजायत घालल मनै।

Ganga Dangara

गाईगुइ -हाला चललई हमार थारु कला संस्कृतिमा

मुक्तक 

गाईगुइ -हाला चललई हमार थारु कला संस्कृतिमा 
समाजमाआगी जरलई हमार थारु कला संस्कृतिमा 

सदीसे सोदाने आपन पहिचानमा निडर हखइकखन 
कुरौटेन त मेख मरलई हमार थारु कला संस्कृतिमा 

लेखक : गोछडा हो गोछडा