गजल
अै दादु भैया,दिदि बाबु चलि धोती,लेहङगा चोलिया लगाई
काहाँ सम सुतबि, आब ते उठि आपन भेषभुषा जगाई ।
बहुत हुगैल औरे संस्कृति के पाछे लागत ओ बिकृति नानत ।
काहॉ सम ननबि, आब ते उठि आपन रिति संस्कृति बचाई ।
हेरागैल हमार उ सक्कु रहनसहन,नाचकोर ओ गीतबास ।
काहॉ सम चुमचाम रहबि, आब ते उठि कुरिती भगाई ।
बहुत बतवा सेकली अधिकार ओ पहिचान के बात ।
आब ते उठि सबजे, यिहिन बचैना बलगर बेन्हवा मगाइृ,
लेखक रबिना चौधरी
अै दादु भैया,दिदि बाबु चलि धोती,लेहङगा चोलिया लगाई
काहाँ सम सुतबि, आब ते उठि आपन भेषभुषा जगाई ।
बहुत हुगैल औरे संस्कृति के पाछे लागत ओ बिकृति नानत ।
काहॉ सम ननबि, आब ते उठि आपन रिति संस्कृति बचाई ।
हेरागैल हमार उ सक्कु रहनसहन,नाचकोर ओ गीतबास ।
काहॉ सम चुमचाम रहबि, आब ते उठि कुरिती भगाई ।
बहुत बतवा सेकली अधिकार ओ पहिचान के बात ।
आब ते उठि सबजे, यिहिन बचैना बलगर बेन्हवा मगाइृ,
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