अँट्वारी पर्व ः एक चर्चा
—छविलाल कोपिला
अँटवारी, माघ ट्यूहार पाछक थारू जातिनके दुस्रा भारी ट्युहार मान्जाइठ् । यिहेसे फेन अँट्वारीहे थारू जातिनके महत्वपूर्ण व्रत पर्वके रुपमे लेजाइठ् । मुले अँट्वारीके बारेमे विभिन्न मतमतान्तर फेन हुइटी आइल बा । ठाउँ अनुसार चाल चलनमे विविधता बा ओ एकर पृष्ठभूमिके बारेमे विभिन्न धारणा आगे आइल बिल्गाइठ् । यिहेसे एकर निश्चित तिथि, मिति हुइना जरुरी रहल बातके फेन बहस हुइटी आइल बा ।
अँट्वारी खास कैके भादो महिनामे परठ् मुले कौनो साल कुवाँरमे अँट्वारी मन्लक फेन देखजाइठ् । मने जारलेसे फेन अँट्वारी ढेरहस् अष्टिम्की पाछेक दुस्रा अँट्वार अथवा कुश अमाँवस (कुशे औंशी) पाछेक पहिल अँट्वारहे अँट्वारी मन्ना चलन बा ।
अँटवारी फेन कोइ बर्का अँटवारी किल मानठ् कलेसे कोइ–कोइ पाँच अँटवार अँटवारी व्रत रठाँ । पाँच अँट्वार पाछे ठिक्के डशिया परठ् । असौंक अँटवारी हेर्न हो कलसे भादो महिनक १५ गतेहे बर्का अँटवारी मन्न ओ पाँच अँटवारी मनुइयन भादो २२, २९ गते ओ कुवाँर महिनक ५ ओ १२ गते व्रत बैठ्ना विल्गाइठ् । असिके पाँच अँटवरिनके व्रत बैठना चलनसे फेन कुश अमाँवसके पहिल अँटवार हे अँटवारी मन्न चलनके प्राण बल्गर विल्गाइठ् ।
कुछ मनैनहे धारणा हिन्दु नारीने तीज पाछक अँटवारहे अँटवारी मन्न चलन बा कैह्के कठाँ लकिन यी ओत्र सान्दर्भिक नै हो । का करे कि पहिले आजुक नन्हें सक्कु जातिनके मिश्रित बसाइ नै रहे थारु समुदायमे ओ ओइनके तीजसे फेन कौनो सम्बन्ध फेन नै रहे । उहेसे तीजहे आधार बनैना जरुरत नै हो । यद्यपि पहिल अँटवार ढेरहस् तीजके पाछे परठ् । यी एकठो संयोग किल हो । कबो–कबो ते तीजक दिन फेन परल रहठ् । पछिल्का समयमे यी तर्क व्यापकता पाइल विल्गाइठ् ओ मनैं दुइ विधामे परके कारदुई–तीन अँटवारी माने पर्न समस्या देख परठ् ।
मुले, तीज मान्के अइना अँटवारीसे कौनो कौनो पाँच अँटवरियनके अँटवारी प्रभावित बनादेहठ् । असिके हेरेबेर हमार पुर्खन यी सक्कु चाजहे ध्यानमे धैके अमाँवस्के पहिल अँट्वारहे बर्का अँट्वारीके रुपमे लेलक हुई कना तर्क बल्गर बिल्गाइठ् । कौनो–कौनो साल पितरपक्ष या समय हान परठ् ते पाँच अँट्वरियनके अँँटवारी फेन बिगर जैठिन् ओइने सक्कु अँटवारी माने नै पैठाँ ओ अँटवारी फेन दुइठो या तीनठो हुइलागठ् ।
प्रकृति पुजक थारू समुदाय खास कैके यी पर्व दिन (सूरज, सूर्य) के पूजा कैना मानजाइठ् । यकर उत्पत्ति भदौ महिनक अँधरियामे हुइल रहे । जौन दिन कुश अमावँसके पहिल अँट्वार रहे । अँटवारहे रविबार फेन कठाँ । रवि कलक सुरज । जब भयावन अँधरिया रातमे सुरजके जन्म हुइल । तबसे यी संसार ओज्रार हुगैल् कना किम्बदन्ती बा । प्रकृतिप्रति विश्वास कैना थारु समुदाय, सूरज ओज्रारके प्रतीक हुइलक ओरसे फेन यकर पूजा ओज्रारदाताके रुपमे कैलक हुइट् । सूरज अँधार चीरके ओज्रार कराइठ् । जिहीसे मनैनहे किल नाही विश्वके सक्कु प्राणी जगतहे काम कैना लिरौसी बनाइठ् ।
ओसिक ते यी पर्व मन्नके आउर मिथक फेन जोरल् बा । श्रीमद्भागवत् पुराण अनुसार यी व्रत सबसे पहिले सन्तनु राजाके पुत्र राजकुमार देवदत्त अँट्वारी व्रत रहलाँ । उहाँ सूर्य उपासक हुइट् । ऊ भोज वियाह फेन नै कैलाँ । राजकुमार देवदत्त चारभाइ रहिंट् । बर्का देवदत्त, भीष्मपितामह, पाण्डु ओ विदरु गुप्ताके लर्का देवदत्त, सुनितीके लर्का भीष्मपितामह अन्ध्रा ओ पाण्डु पाण्डा रोग हुइलक ओरसे पाण्डु नामाकरण हुइलिन् । धार्मिक दृष्टिमे हेर्बाे सूर्य पूजा कर्बाे ते पाण्डु रोग मेटजाइठ् कना प्राचीन धारणा बा । ते यी व्रत पहिले राजकुमार देवदत्त रहलाँ, तब पाण्डु, कुन्ती, माद्री, कर्ण ओ भीम ओकर दादु राजा परिक्षित सूर्य हेतु श्रीमदभागवत सुनैलाँ । यी अब व्रत रैह्के आपन बाबक सोचके उद्धारके लग श्रीमदभागवत सुनैलाँ, ओकरवाद सब द्यौंटा फेन यी महान पर्व माने लग्लाँ । बरे–बरे मुनिलोग सूर्यके उपासकके रुपमे सूरजके जन्म दिन अँट्वारहे अँट्वारी माने लग्लाँ ओ आझ फेन यी ट्युहार चलन चल्टीमे बा । कना बात वीरबहादुर चौधरी आपन किताब ‘वीरबहादुरके ऋतुमे उल्लेख कैले बटाँ ।
दोसर मिथक महाभारत कथासे जोरल बा । पाँच पाण्डव मध्ये सबसे बल्गर भेवाँ (भीम) रहिंट् । जब कौरव ओ पाण्डवके लडाइ पर्लिन । उहे समय भेंवाँ रोटी पकाइ टहिंट् । ऊ रोटी पकैटी–पकैटी टावामे छोरके चल्गैलाँ । जब लराइसे भुँखासल अइला ओ उहे एक्के करे पकाइल रोटी खाके आपन पेट भरैलाँ कना तर्क बावई । कलेसे केक्रो तर्क भेंवाँ थारू राजा दंगीशरणहे लराइमे सघैलक ओ सबसे बल्गर हुइलक ओरसे भेंवाँहस् बल्गर हुइना संकल्पसे साथ अँटवारीमे भेवाँक पूजा कैलक विचार फेन जनमानसमे बा । अँट्वारीमे सबसे पहिले अक्केकरे रोटी पकाके भेवाँहे पुज्ठाँ कना किम्वदन्ती फेन बा । मुले, ठाउँ अन्सार थारू समुदायमे फेन अलग–अलग चलन प्रक्रिया रहल बा ।
अँट्वारी व्रत बैठ्ना ट्युहार हुइलक ओरसे शच्चिरके दिनभर मच्छरी मर्ना आउर टिना टावन खोज्ना कैजाइठ् । मच्छरीक् सुखौरा पहिलेहें फेन बनाइल रहठ् । अँटवारीमे मच्छरी बिशेष मान्जाइठ् । आउर सरशिकार नैरहठ् । सागसेवाँरमे पोंइ, ठुसा लगाके रहठ् । जब सन्झा हुई ते ‘डटकट्टन’ (दर) के नाउँसे कुछ मीठ–मीठ खैना रिझाइल् रहठ् । व्रत बैठुइयन यी रातके मुर्गी बस्नासे पहिले खैठाँ । यदि खैनासे पहिले मुर्गी बोल्गैलाँ कलेसे ऊ खाई नै मिलठ् । कोइ खालेहल कलेसे ऊ अँट्वारी व्रत रहे नैपाइठ् । या ऊ डुठेह्रु हुजाइठ् कना मान्यता बा ।
व्रत बैठुइयन अँट्वारके दिन बिहाने लहाके भुख्ले घरक बहरी या अँग्नामे गाइक गोबरसे सुग्घरके गोब्रैठाँ । आझुक दिन कोरे आगीमे सक्कु खाना पकाजाइठ् । थारु समुदायमे भन्सामे रहल् भित्तरके आगी नै बेल्सठाँ । पुरान आगी चोखा नै मान्जाइठ् । उहे ओरसे गनयारी काठ घोटके निकार चोखा आगीले रोटी पकैठाँ ।
अन्डिक रोटी, गोहुँक रोटी, पक्की, अम्रुट्, केरा, तरुल, उस्नल् घुइया, मिठाई दारल् मोर्सक भूजा ओ मिठैहा पानी खास मान्जाइठ् । नोन, बेसार, मिर्चा पहिल दिन बर्जित रहठ् ।
जब सक्कु चाज पकाके तयार हुइटे बिहान गोब्रैलक ठाउँमे काठक बैठ्ना (पिर्का या कौनो बैठ्ना वस्तु) पर बैठके आपन प्रक्रिया आगे बर्हैठाँ । खैनासे पहिले अगयारी (अग्यारी) देना चलन बा । अगयारी कलक गाई गोबरसे गोब्रैलक ठाउँमे आगिक अङ्ठा धैके ओँह्पर सर्री धूप, मस्का ओ खाइक लग तयार कैलक बस्तु (अन्डिक रोटी, गोहुँक रोटी, पक्की, अम्रुट्, केरा, तरुल, उस्नल घुइया, मिठाई दारल मोर्सक भूजा ओ मिठैहा पानी) सक्कु अक्केमे सानके चर्हैनाहे कठाँ ।
सूरज फेन आगीके मुख्य श्रोत हो उहेसे सबसे पहिले आगीहे प्रसाद ग्रहण करैना चलन आइल् । अगयारी देके तीन चो दाहिन ओ तीनचो बाउँ पाजरसे पानीले पर्छना फेन चलन बा । कोइ–कोइ पाँच या सात फेरा फेन सर्छठाँ । ओकर पर्से आपन चेली–बेटिनके लग फेन अग्रासनके रुपमे सक्कु चाज निकर्ना चलन बा । निकारके तब बल्ले खैना चलन बा । खैना क्रम दिन रहटसम किल चलठ् । दिन बुर्टीकिल खैना काम बन्द हुजाइठ् ।
दोसर बिहानके भात, खँरिया, फुलौरी, पोंइ मिलाइल ठुसा, सुखौरा मच्छरी, घुइयक टिना, भेन्डी लगाके विजोर संख्यामे टिनाटावन बनाजाइठ् । मच्छिक सुखौरा विशेष मान्जाइठ् मुले शिकार भर फर्हार कैना पाछे किल मारजाइठ् । जब तयार हुई ते काल्हिक नन्हें लहाके अगयारी देके फेन सक्कु चाज अलग–अलग दोना–टेपरीमे ‘अग्रासन’ कर्ह जाइठ् ओ बल्ले खैना शुरु हुइठ् । खानपिन ओराई ते कार्हल् अग्रासन आपन चेली बेटिन घर देहे जैठाँ । असिके अग्रासन देहे गैलेसे आपन चेलीबेटिनसे आपसी सद्भाव बर्हठ् । अग्रासन चेलीबेटिन बहुत अस्रा कैले रठाँ । ओइने बहुत मानमर्जाद फेन कैठाँ । थारू समुदायमे मानमर्जाद जाँर–मद ओ सरशिकार खवाके कैठाँ । असिके अँटवारी पर्व ओराइठ् ।
सन्दर्भ सामग्री
सत्गौवाँ, वीरबहादुर (२०६६), हमार पवित्र टयूहार अँटवारी । लौवा अग्रासन ।
सत्गौवाँ, वीरबहादुर (२०६८) हमार पवित्र टयूहार अँटवारी, । वीरबहादुरके ऋतु । दाङ, देउखुरी साहित्य तथा सांस्कृतिक मञ्च ।
—छविलाल कोपिला
अँटवारी, माघ ट्यूहार पाछक थारू जातिनके दुस्रा भारी ट्युहार मान्जाइठ् । यिहेसे फेन अँट्वारीहे थारू जातिनके महत्वपूर्ण व्रत पर्वके रुपमे लेजाइठ् । मुले अँट्वारीके बारेमे विभिन्न मतमतान्तर फेन हुइटी आइल बा । ठाउँ अनुसार चाल चलनमे विविधता बा ओ एकर पृष्ठभूमिके बारेमे विभिन्न धारणा आगे आइल बिल्गाइठ् । यिहेसे एकर निश्चित तिथि, मिति हुइना जरुरी रहल बातके फेन बहस हुइटी आइल बा ।
अँट्वारी खास कैके भादो महिनामे परठ् मुले कौनो साल कुवाँरमे अँट्वारी मन्लक फेन देखजाइठ् । मने जारलेसे फेन अँट्वारी ढेरहस् अष्टिम्की पाछेक दुस्रा अँट्वार अथवा कुश अमाँवस (कुशे औंशी) पाछेक पहिल अँट्वारहे अँट्वारी मन्ना चलन बा ।
अँटवारी फेन कोइ बर्का अँटवारी किल मानठ् कलेसे कोइ–कोइ पाँच अँटवार अँटवारी व्रत रठाँ । पाँच अँट्वार पाछे ठिक्के डशिया परठ् । असौंक अँटवारी हेर्न हो कलसे भादो महिनक १५ गतेहे बर्का अँटवारी मन्न ओ पाँच अँटवारी मनुइयन भादो २२, २९ गते ओ कुवाँर महिनक ५ ओ १२ गते व्रत बैठ्ना विल्गाइठ् । असिके पाँच अँटवरिनके व्रत बैठना चलनसे फेन कुश अमाँवसके पहिल अँटवार हे अँटवारी मन्न चलनके प्राण बल्गर विल्गाइठ् ।
कुछ मनैनहे धारणा हिन्दु नारीने तीज पाछक अँटवारहे अँटवारी मन्न चलन बा कैह्के कठाँ लकिन यी ओत्र सान्दर्भिक नै हो । का करे कि पहिले आजुक नन्हें सक्कु जातिनके मिश्रित बसाइ नै रहे थारु समुदायमे ओ ओइनके तीजसे फेन कौनो सम्बन्ध फेन नै रहे । उहेसे तीजहे आधार बनैना जरुरत नै हो । यद्यपि पहिल अँटवार ढेरहस् तीजके पाछे परठ् । यी एकठो संयोग किल हो । कबो–कबो ते तीजक दिन फेन परल रहठ् । पछिल्का समयमे यी तर्क व्यापकता पाइल विल्गाइठ् ओ मनैं दुइ विधामे परके कारदुई–तीन अँटवारी माने पर्न समस्या देख परठ् ।
मुले, तीज मान्के अइना अँटवारीसे कौनो कौनो पाँच अँटवरियनके अँटवारी प्रभावित बनादेहठ् । असिके हेरेबेर हमार पुर्खन यी सक्कु चाजहे ध्यानमे धैके अमाँवस्के पहिल अँट्वारहे बर्का अँट्वारीके रुपमे लेलक हुई कना तर्क बल्गर बिल्गाइठ् । कौनो–कौनो साल पितरपक्ष या समय हान परठ् ते पाँच अँट्वरियनके अँँटवारी फेन बिगर जैठिन् ओइने सक्कु अँटवारी माने नै पैठाँ ओ अँटवारी फेन दुइठो या तीनठो हुइलागठ् ।
प्रकृति पुजक थारू समुदाय खास कैके यी पर्व दिन (सूरज, सूर्य) के पूजा कैना मानजाइठ् । यकर उत्पत्ति भदौ महिनक अँधरियामे हुइल रहे । जौन दिन कुश अमावँसके पहिल अँट्वार रहे । अँटवारहे रविबार फेन कठाँ । रवि कलक सुरज । जब भयावन अँधरिया रातमे सुरजके जन्म हुइल । तबसे यी संसार ओज्रार हुगैल् कना किम्बदन्ती बा । प्रकृतिप्रति विश्वास कैना थारु समुदाय, सूरज ओज्रारके प्रतीक हुइलक ओरसे फेन यकर पूजा ओज्रारदाताके रुपमे कैलक हुइट् । सूरज अँधार चीरके ओज्रार कराइठ् । जिहीसे मनैनहे किल नाही विश्वके सक्कु प्राणी जगतहे काम कैना लिरौसी बनाइठ् ।
ओसिक ते यी पर्व मन्नके आउर मिथक फेन जोरल् बा । श्रीमद्भागवत् पुराण अनुसार यी व्रत सबसे पहिले सन्तनु राजाके पुत्र राजकुमार देवदत्त अँट्वारी व्रत रहलाँ । उहाँ सूर्य उपासक हुइट् । ऊ भोज वियाह फेन नै कैलाँ । राजकुमार देवदत्त चारभाइ रहिंट् । बर्का देवदत्त, भीष्मपितामह, पाण्डु ओ विदरु गुप्ताके लर्का देवदत्त, सुनितीके लर्का भीष्मपितामह अन्ध्रा ओ पाण्डु पाण्डा रोग हुइलक ओरसे पाण्डु नामाकरण हुइलिन् । धार्मिक दृष्टिमे हेर्बाे सूर्य पूजा कर्बाे ते पाण्डु रोग मेटजाइठ् कना प्राचीन धारणा बा । ते यी व्रत पहिले राजकुमार देवदत्त रहलाँ, तब पाण्डु, कुन्ती, माद्री, कर्ण ओ भीम ओकर दादु राजा परिक्षित सूर्य हेतु श्रीमदभागवत सुनैलाँ । यी अब व्रत रैह्के आपन बाबक सोचके उद्धारके लग श्रीमदभागवत सुनैलाँ, ओकरवाद सब द्यौंटा फेन यी महान पर्व माने लग्लाँ । बरे–बरे मुनिलोग सूर्यके उपासकके रुपमे सूरजके जन्म दिन अँट्वारहे अँट्वारी माने लग्लाँ ओ आझ फेन यी ट्युहार चलन चल्टीमे बा । कना बात वीरबहादुर चौधरी आपन किताब ‘वीरबहादुरके ऋतुमे उल्लेख कैले बटाँ ।
दोसर मिथक महाभारत कथासे जोरल बा । पाँच पाण्डव मध्ये सबसे बल्गर भेवाँ (भीम) रहिंट् । जब कौरव ओ पाण्डवके लडाइ पर्लिन । उहे समय भेंवाँ रोटी पकाइ टहिंट् । ऊ रोटी पकैटी–पकैटी टावामे छोरके चल्गैलाँ । जब लराइसे भुँखासल अइला ओ उहे एक्के करे पकाइल रोटी खाके आपन पेट भरैलाँ कना तर्क बावई । कलेसे केक्रो तर्क भेंवाँ थारू राजा दंगीशरणहे लराइमे सघैलक ओ सबसे बल्गर हुइलक ओरसे भेंवाँहस् बल्गर हुइना संकल्पसे साथ अँटवारीमे भेवाँक पूजा कैलक विचार फेन जनमानसमे बा । अँट्वारीमे सबसे पहिले अक्केकरे रोटी पकाके भेवाँहे पुज्ठाँ कना किम्वदन्ती फेन बा । मुले, ठाउँ अन्सार थारू समुदायमे फेन अलग–अलग चलन प्रक्रिया रहल बा ।
अँट्वारी व्रत बैठ्ना ट्युहार हुइलक ओरसे शच्चिरके दिनभर मच्छरी मर्ना आउर टिना टावन खोज्ना कैजाइठ् । मच्छरीक् सुखौरा पहिलेहें फेन बनाइल रहठ् । अँटवारीमे मच्छरी बिशेष मान्जाइठ् । आउर सरशिकार नैरहठ् । सागसेवाँरमे पोंइ, ठुसा लगाके रहठ् । जब सन्झा हुई ते ‘डटकट्टन’ (दर) के नाउँसे कुछ मीठ–मीठ खैना रिझाइल् रहठ् । व्रत बैठुइयन यी रातके मुर्गी बस्नासे पहिले खैठाँ । यदि खैनासे पहिले मुर्गी बोल्गैलाँ कलेसे ऊ खाई नै मिलठ् । कोइ खालेहल कलेसे ऊ अँट्वारी व्रत रहे नैपाइठ् । या ऊ डुठेह्रु हुजाइठ् कना मान्यता बा ।
व्रत बैठुइयन अँट्वारके दिन बिहाने लहाके भुख्ले घरक बहरी या अँग्नामे गाइक गोबरसे सुग्घरके गोब्रैठाँ । आझुक दिन कोरे आगीमे सक्कु खाना पकाजाइठ् । थारु समुदायमे भन्सामे रहल् भित्तरके आगी नै बेल्सठाँ । पुरान आगी चोखा नै मान्जाइठ् । उहे ओरसे गनयारी काठ घोटके निकार चोखा आगीले रोटी पकैठाँ ।
अन्डिक रोटी, गोहुँक रोटी, पक्की, अम्रुट्, केरा, तरुल, उस्नल् घुइया, मिठाई दारल् मोर्सक भूजा ओ मिठैहा पानी खास मान्जाइठ् । नोन, बेसार, मिर्चा पहिल दिन बर्जित रहठ् ।
जब सक्कु चाज पकाके तयार हुइटे बिहान गोब्रैलक ठाउँमे काठक बैठ्ना (पिर्का या कौनो बैठ्ना वस्तु) पर बैठके आपन प्रक्रिया आगे बर्हैठाँ । खैनासे पहिले अगयारी (अग्यारी) देना चलन बा । अगयारी कलक गाई गोबरसे गोब्रैलक ठाउँमे आगिक अङ्ठा धैके ओँह्पर सर्री धूप, मस्का ओ खाइक लग तयार कैलक बस्तु (अन्डिक रोटी, गोहुँक रोटी, पक्की, अम्रुट्, केरा, तरुल, उस्नल घुइया, मिठाई दारल मोर्सक भूजा ओ मिठैहा पानी) सक्कु अक्केमे सानके चर्हैनाहे कठाँ ।
सूरज फेन आगीके मुख्य श्रोत हो उहेसे सबसे पहिले आगीहे प्रसाद ग्रहण करैना चलन आइल् । अगयारी देके तीन चो दाहिन ओ तीनचो बाउँ पाजरसे पानीले पर्छना फेन चलन बा । कोइ–कोइ पाँच या सात फेरा फेन सर्छठाँ । ओकर पर्से आपन चेली–बेटिनके लग फेन अग्रासनके रुपमे सक्कु चाज निकर्ना चलन बा । निकारके तब बल्ले खैना चलन बा । खैना क्रम दिन रहटसम किल चलठ् । दिन बुर्टीकिल खैना काम बन्द हुजाइठ् ।
दोसर बिहानके भात, खँरिया, फुलौरी, पोंइ मिलाइल ठुसा, सुखौरा मच्छरी, घुइयक टिना, भेन्डी लगाके विजोर संख्यामे टिनाटावन बनाजाइठ् । मच्छिक सुखौरा विशेष मान्जाइठ् मुले शिकार भर फर्हार कैना पाछे किल मारजाइठ् । जब तयार हुई ते काल्हिक नन्हें लहाके अगयारी देके फेन सक्कु चाज अलग–अलग दोना–टेपरीमे ‘अग्रासन’ कर्ह जाइठ् ओ बल्ले खैना शुरु हुइठ् । खानपिन ओराई ते कार्हल् अग्रासन आपन चेली बेटिन घर देहे जैठाँ । असिके अग्रासन देहे गैलेसे आपन चेलीबेटिनसे आपसी सद्भाव बर्हठ् । अग्रासन चेलीबेटिन बहुत अस्रा कैले रठाँ । ओइने बहुत मानमर्जाद फेन कैठाँ । थारू समुदायमे मानमर्जाद जाँर–मद ओ सरशिकार खवाके कैठाँ । असिके अँटवारी पर्व ओराइठ् ।
सन्दर्भ सामग्री
सत्गौवाँ, वीरबहादुर (२०६६), हमार पवित्र टयूहार अँटवारी । लौवा अग्रासन ।
सत्गौवाँ, वीरबहादुर (२०६८) हमार पवित्र टयूहार अँटवारी, । वीरबहादुरके ऋतु । दाङ, देउखुरी साहित्य तथा सांस्कृतिक मञ्च ।
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