Wednesday, 5 March 2014

गजल

झिनअउसी काले कहले बनतई सानु बारे नाही परतई
नाही ऐबही मोई त उ थारु संग्राहलय सारे नाही परतई 

तोर फदकक बाणसे त -मरसक घेनही मोई जीवनमा
सदी झिन टोसी हो त ढुकढुकी आको मारे नाही परतई

कालही त अस्करे रहनही आजु अस्करेबनही गोछ्डामा
अस्करेहेलबही थारु सस्कृतिक सागर तारे नाही परतई 

मायाक खेलमा जीतबही तोई -मनसेक जिन्दगीयामा
सदी आबे त थारुक प्रतिस्पर्दामा तोई हारे नाही परतई

सदी बथइक कनइक नहियान करसही तोई दुनियामा
हो थरुवा सभनक लागि -गोही आशु झारे नाही परतई 

छुट्योइक बनहु हमरा त तोरके हरेक पाइलासभनमा
झुठा कसमखइते -थरुवानके मख्ख पारे नाही परतई

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