Tuesday, 25 March 2014

गजल

Anurag Sair

#गजल
मिन्झारिम चुप्पैसे बुदु दारु नूँक्का तानथुइही
अबतो बहरिम बैठके बुदि हुँक्का तानथुइहि

दरङ्गम सेम.लौका.करैला त पक्कै हुइ फरल
बारीमा लजर नालागे कहिके झुक्का तानथुइहि

घैला छलकैती पानी भरना जुन त हुइलहुई छैलीक
गहिँर रहा धाँह्री कुँवाक पगहा रुक्का तानथुइहि

जिद्दी सिल स्वभाबका रहा उ छोट्की छावाफे
भुँसयाइती कबुकबु दाइकमा मुक्का तानथुइहि

जह्रीयाँ रहै हमार उ बाबाफे कबु चत्नी सँग.
कबु सिकार त कबुकबु जाँर सुख्खा तानथुइहि

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