Saturday, 26 April 2014

निष्ठुरी चिज

गजल 

यिहे मनम मन सरूइया खोजु काँहा 
म्वार लागिए टन करूइया खोजु काँहा 

लाल टिक्ली लट्कल झोबन्हा हाँठके चुर्या 
बजैटी छन छन परूइया खोजु काँहा 

मुटुक ढुक्ढुकी बर्हाख मैयँक स्पर्शले 
जीवन्त दन दन बरूइया कोजु काँहा 

उकाली ओराली हरपल सुख दु:खम 
तर उप्पर बन झरूइया खोजु काँहा 

जिन्दगी भर खैना लगैना दाईजो अनि 
आकु बहुट्ट धन भरूइया खोजु काँहा 

" निष्ठुरी " चिज चौधरी 
दाङ्ग धनौरी 
हाल : दु : खद् संसार

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