Tuesday, 8 April 2014

तुहाँर जिते म्वार हार, जीवन हुईल बच्ना भार
राम चन्द्र चौधरी 
कैलाली नेपाल 

एक नज़र हेरबेर ...........

नेपाल बहु जाति, बहु भाषी, बहु धर्म रहल एक सुन्दर देश हो | हमार पहिल पहिचान कलेक हम्रे नेपाली हुई, मने नेपाल हे मेरमेरिक जातजाति भाषा, संस्कृति मध्य एक हमार थारु जाति, भाषा, संस्कृति फेर हो | मेरमेरिक पुरातात्तिक ठाउँ व मेरमेरिक भेतागिल सामान हे खोल्के हेरबेर थारु जाति ५००० बर्ष पहिलेसे आपन मौलिकताहे स्थापित करल देख मिलत मने मेरमेरिक कल खण्डमे भौगोलिक, राजनीतिक, आर्थिक कारणले थारु जातिनके अस्तित्व नै हेरैना बेला पुग राखल बा | 
धार्मिक दृष्टिकोणले हेरबेर दिनदिनै हमार धर्मम अन्य धर्मक प्रभाव परति गिल देख मिलत | मोर कहाइ , बोलाई मनैनके हक, अधिकारके विरुद्ध नै हो, कौनो धर्मक बिरुद्ध फे नै हो | हमार एकथो ऐसिन धर्म बा जहाँ हरेक औरे धर्म हे फे सम्मान करती आइल बा | हिन्दु धर्म एक धार्मिक सहिषुणता पूर्ण एक बल्गर, मजा पक्ष बोकल धर्म हो | मोर बुझाईम सहिषुणता कलेक आपन धर्म हे मान्ती औरे धर्म हे फे सम्मान करे सेक्ना, कर्ना हो जैसिन लागत | उहे धर्म मन्ना हाम्रे एकथो थारु जति फे हुई | मने अब्बेक यी बेला गाउँघरम गहिरसे पेलक हेरबेर का देखमिलत त ? 

थारु भाषा, साहित्य, कला, संस्कृतिक पक्ष हेरबेर परा-पुर्व कालसे हमार थारु समाज आपन एक छुट्टै भाषा, संस्कृति, कला रहल मेरमेरिक तर-तिहवार, गीत-बाँस, नाच-कुरिया, रहन-सहन, पहिरन, गहना-गुरिया आदिले परिचित कराइल स्पस्ट बा, प्रस्टै बा | 

मोर कहाई यी हो कि हमार आपन छुट्टै पहिचान, भाषा, संस्कृति कला त बा ! मने कहाँ बा ? मोर आपन जिन्गीसंग तुलना करबेर जनम हुके जाने जुकुरसे आजसम उह आपन गाउँहे हेर्नु, हेरतु जहाँ आज बहुत धेर विकास फे हुइल, परिवर्तन फेर हुइल मने दु:खक बाट विकास त हुइल परिवर्तन त हुइल मने हमार आपन थारु भाषा, कला, साहित्य कहाँ गइल त ? उ दौना, बेबरी, गेंदा, चम्फा, चमेली फूला कहाँ गइल त ? बुबनके सद्दे बर्खा बेला गइना सजना गीत कहाँ गइल त ? झुम्रा, बैठक्की, हुर्दंग्वा नाच कहाँ गइल त ? का यी सब इतिहास केल हो ? हमार आपन खेल छुर, कब्बडी, घर-बसावर, बुक्री-भारा कहाँ गइल त ? लेहंगा, चोलिया, अघ्रान, गतिया, अगौछा, गम्छा, रुमाल, झुलुवा कहोर गइल त ? अब्बक यी सब चिज मोर जीवनके एक महा कर्रा सवाल बन्के बैथल बा | एकर सहि जवाफ, निकास, डगर कहाँ बा त ? 

गइल माघ हे एक फेरा सम्झबेर काठमान्डूम हुइल माघी महोत्सव के सेरोफेरो म हमार माननीय गोपाल दहित ज्यु से हिमालय टेलिभिजनम हुइल प्रत्यक्ष अन्तरबार्ताक एक प्रश्न महिन बहुत गहिरसे सोच्ना बाध्य बना देहल | प्रश्न यी रह "तपाई थारुहरुको विभिन्न अगुवाई गर्नु हुन्छ तर कतिपय थारुहरुकै पर्वमा चाडवाडम आफ्नो पहिरन नलगाएको पाइन्छ ? यसमा तपाइको भनाई ?" उ प्रश्न (सवाल) एकदमै सान्दर्भिक फे हो | काहे कि हमार थारु समाजमे यी हुइता | जवाफम माननीय गोपाल दहित ज्यु काले रहै "थारुनके लुगा, पहिरन जौन बा उ बजारम किन नि मिलत, बनैना समय, मेहनत लागत |" का अप्नक बिचारम उ सवालक जवाफ यिह सहि हो त ? एकफेरा त यी सवाल मोर आपन उप्पर ऐसिक अस्ना-पानी बन्के बरसल कि मैं बहुत गहीर सोचमा परगिनु ! 
माननीय गोपाल दहित ज्यु अपनक प्रसंग उठैलु एकर लग माफी चाहतु, मने थोरचे मैं एक बात थप जाईतु अब्बक युग कलेक आधुनिकताके युग हो | हमार दायित्व, जिम्मेबारी कलेक अब्बक युवा जमातम सकारात्मक सोच विकासके सिर्जना कर्ना हो | यी आधुनिक युगम आपन मौलिकता झल्कैना, स्थापित कर्ना चुनौती के बात हो | अब्बक सत्य कहबेर यिहे हमार थारु वस्ती, समाजके युवा हुक्रनके प्रमुख उद्देश्य, बिषय बनाई परि जैसिन लागत |

उप्परक सवालम कहबेर हम्रे आपन लुगा-पहिरन हे बचाइक लग स्थापित करक लग एकथो उद्धोगके स्थापना कर सेक्थि जहाँ कैयन बेरोजगार युवा रोजगारफे हुइना व हमार आपन साँस्कृतिक पहिचानके लुगा-पहिरन उत्पादन कर सेक्बी जसिन लागत | व हमार आपन उत्पादनहे बजारीकरण करके आपन पहुँच और आघ बहराइ सेकब कना लागत महि | तब मारे अब्बक युवाम सकारात्मक सोचके विकास कर्ना बहुत जरुरि जसिन लागत | 

मोर कहाई अप्न अग्रज हुक्रे एकथो बल्गर खुँटा बन्के थरहयाई, अप्नक हुक्रे पहुँचम पुगल बाटी, हम्र युवा हुक्रनके दर्गार आड बनि हम्र युवा कोरै, बाटी, सरदर, भिंता, छ्प्रा बन्ना तयार बाटी र एकथो ऐसिन बल्गर, सुन्दर घरके सिर्जना करी जहाँ हमार अइना पुस्ता उ बल्गर घरक सित्तर छहुरिम बैठके आपन कला, भाषा, साहित्य, संस्कृति सिखै, महसुस करै व गर्व करै कि हाँ हमार आपन थारु भाषा, साहित्य, संस्कृति ऐसिन मजा बा | यिहिहे हम्रे फे सवारे परत बचाई परत कना भावनक विकास हुए | अब्बक आधुनिक युगम हमार थारु मौलिकता झल्के | अप्न हुक्र एकथो ऐसिन फूलवरिया बनाई जहाँ दौना-बेबरी, गेंदा, चम्फा, चमेली फूला फूले मिठ मैगर सुबास छित्काई जहाँ हमार अइना पुस्ता लेहंगा, चोलिया, फरिया, गोनिया, अगौछा, रुमाल पहिरके छुर, कब्बडी घर-बसावर बुकरी-भारा खेले सिखै | ऐस

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