Wednesday, 14 May 2014

थारू गजल


जाने का कैले रहु साथ मोर छोर देहलो
महिन हे छोर के औरेक संग नाता जोर लेहलो

देहे सेकम कुछु नाइ मै एक थो गरिब न हु
मन एक थो देहल रहू उहिन फे आज फोर देहलो

भरखर तो माया कलेक का हो कैके बुझतहु
हस्ती जिन्गी मे तु आझ बिष घोर देहलो

साथ देम तो कहती रहु सद्दा तुहिन हे
तर फेन विछोड के लहदोरम बिलबोर देहलो

गहीर मैया कैनु सायद यीहे मोर गल्ती रहे
गाउक मनैन के आगे बदनाम मोर मुह मे पतोर देहलो

सन्देश दहित
जानकीनगर खर्गौली , कैलाली

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