Thursday, 15 May 2014

नारायण मगर


गजल 

चरल जवानी मही दे धरो साली!
भरल,जवानी मही दे धरो साली!

पापी यि गाऊँ समाज के नजर, 
गरल,जवानी मही दे धरो साली! 

आज से काल काल से परऊ,
बरल,जवानी मही दे धरो साली!

रातदिन तुहार मैयकलाग लर्कन,
मरल,जवानी मही दे धरो साली!

दाई कसम सच कहम म्वार मन,
परल,जवानी मही दे धरो साली!

हलव़ार ८ खाद्रे दाङ्ग

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