Tuesday, 13 May 2014

निरू चौधरी

लागथ ऊ महीसे दुर हुइती
बा।
जुन काम फे झुर हुइती
बा।

अन्जानमे गल्ति हुईल 
हुइ कुछु।
रिसाके बहुत चुर हुइती
बा।

सद्देभर मिठ बोली बोल्ना
मनै। 
काकरे आज क्रुरुर हुइती 
बा।

जब् से जुर पैदा हुइल 
तब् से।
सम्बन्ध कहोर मधुर हुइती बा।

नि बोलथ् आज काल धेर
बदल गिल।
कि केक्रो दबाबले मजबुर
हुइती बा।


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