Monday, 30 June 2014

कन्चन लडिएक पानी हस

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गजल

कंचन् लदियक् पानी हस् ई मोर् मैगरमैया
नाजैहो बिच् दग्राम् बिस्राके छोर् मैगरमैया

शुन्दर फुलासे भरल् ईमोर फुलरिया मसे
डर् लाग्त् कोई भौँरा नालेहे चोर् मैगरमैया

लदियाओ शमुन्दरके सच्चा उमिलन् हस्
लागत् आझि तुहिन्से लिउँ जोर् मैगरमैया

सप्ना भरल् जिउलैके तोहार् अस्राम् बाटुँ
ईहि माटीक् भाँराहस् नदेहो फोर् मैगरमैया

खुसी मोर् तुहिहोउ दुखीरही मोर् कम्जोरी
हाँठ्देबोतो साठ्देम् बाटोहारेओर् मैगरमैया

लाछु डंगौरा थारु
कैलाली

Saturday, 28 June 2014

यी साल जोस जागँर लगाके

गजल 
यी साल जाेश जाँगर लगाके खेती करम मै ।
बाेरिङ पम्सेटके पानी चलाके खेती करम मै ।।

अापन मेहनटके फल तुरम खेत्वा बारीमसे ।
कुल्वा नहरके सिँचाइ बनाके खेती करम मै ।।

खेत्वम करंगी,बासमती,अन्डी धान लगैम ।
हिलाकिचाम हाँठ गाेरा सराके खेती करम मै ।।

बर्डा,भैँसा,हर लेके जाेत जैम भिन्सारके खेत्वम ।
पछ पछ बाँउ बाँउ कटि बातले हर्हाके खेती करम मै ।।

धान लगाक अाेराइल दिन खेत्वम खुशियाली ।
हर्दह्वा खेलबेर मन्द्रा बजाके खेती करम मै ।।

सेबेन्द्र कुसुम्या
हसुलिया ८ कैलाली

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Thursday, 26 June 2014

अधिकार के खोजी कर्ती

गजल

अधिकार के खोजी कर्ती लर्ने बाटु लौसे मुवम्
 निडरा ख आघ आघ सर्ने बाटु  लौसे मुवम्

थारु संस्कृति हमार पहिचान बचाइक लाग
थारु सक्कुन् एकजुट पर्ने बाटु लौसे मुवम्

हिमाल मधेस तराई कौनो निहो पराई यिहाँ
पराइ बनाइ खोज्ना हुँकन मर्ने बाटु लौसे मुवम्

भुमि पुत्र आदिवासीन् मधेसी घोषित कर्त हमन
एका विरुद्ध ज्यान जोखिम म दर्ने बाटु लौसे मुवम्

चिमाखन निहुइल आप घोर बिरोध कर परी
गाउँ बजार से सक्कु थारु झर्ने बाटु लौसे मुवम्

एम के कुसुम्या
मानपुर २ दाङ

जिल्बिल आरिम गिस्त

थारु भाषाके गजल

जिल्बिल आंरिम गिस्ति हर पक्रना दिन आइल
सिम सिम पानिम भिस्ति हर पक्रना दिन आइल ।

अयिसबेर भोङ्गल्ला बिहान लाक सुत्ख बानिपरल मनै
अंङ्गठ्थि उठ्ख आंख मिस्ति हर पक्रना दिन आइल ।

खाना खैना वैना फुर्सद निरहत उ ब्यालम
झट्ट पट्ट मुहोम थुंस्ति हर पक्रना दिन आइल ।

निनेङ्ना धुम्मर गोरुन पछ बाउं कति रिसले
बत्तिस्थो दांत पिस्ति हर पक्रना दिन आइल ।

जबसे बर्षा मचल कलसे निवराइतसम
जांङ्घेक इजारा कस्ति हर पक्रना दिन आइल ।

चन्द्र बिबस अनुरागि
डुरुवा ९ ड्वाङ्पुर
हाल मलेसिया

Tuesday, 24 June 2014

तुहा मैयक साथ पाइक लाग


गजल 
तुहाँ मैयक साथ पाइक लाग मै का कर परी
संस्कार घरक छाइक लाग मै का कर परी

आजकल असहे सोचम बहुत दुवल बाटु मै
आपन प्यारी बनाइक लाग मै का कर परी

नाट निन्द लागत नाट भुक पियास दिनम 
कहो मै सिन्दुर भराइक लाग मै का कर परी

बिश्वास करहो कति सद्द भर हमार मैयाम
यी समाजन सम्झाइक लाग मै का कर परी

अन्धकार लागल बाट यी संसार तुहाँ बिना
ऊ दिलम मैया जगाइक लाग मै का कर परी

राम पछलदङग्याँ अनुरागि
हेकुली ८ दाङ

Monday, 23 June 2014

जाँर छब्ना बन्कसिक छब्नी



                  गजल
जाँर छब्ना बन्कसिक छव्नी  हुईपरी ।
सट्कीना जाँर आलुक चट्नी हुई परी ॥

टब अइठा स्वाद जाँर पिए बेर घरम ।जाँर दिहुईयाँ आपन जन्नी हुई परी ॥

मान समान बहुत कर्थ ससार जइलसे ।सिकार खाइबे सालक मङ्नी हुई परी ॥
 
 
हासि मजा फे कर्र प्रथा कभू काल ।  
खिझिलसे गरीना बङठुठ्नी हुई परी ॥ 

 राम पछलदङग्याँ अनुरागि

Friday, 20 June 2014

ओजरीया रातमा ह्यता

गजल

ओजरीया रातमा भ्यता आईलि मोर काली।।
सुन्दर सपना सजल गित गईली मोर काली।।

गाउमा चर्च टोलमा चर्च सब ठाउँ हूकार नाउँ।।
सक्कुहनक मनमा डेरा जमाईली मोर काली।।

कबु दुपहरि घामम कबू साउने बर्खम।।
कयाल बद्री बनका वारपार छाईली मोर काली।।

सब जान हूकार पछ पर्लसे फे ।।
तबु फे महिन कजे मनमा सजाईली मोर काली।।


मस्तराम थारु
महुवा बर्दिया
नेपाल

Thursday, 19 June 2014

धेर होगिल आप त कुछु करी

>>>>>>>>गजल<<<<<<<<

धेर होगिल आप त कुछु करी युवा हुँक्र
पाछ नाहिँ आप त आघ सरी युवा हुँक्र

बचैहोकै क संस्कृति छोर्कगैल बुदिबाज्या
पुरान संस्कृति हम्र बचाइ परी युवा हुँक्र

झल्काइ पहिचान मेची से महाकाली सम्म
थारु असिन कैख देश म नाउँ धरी युवा हुँक्र

हेरैतिबा पहिचान हमार बनाइ ख्वाज्त मधेसी
मधेसी बनाइ खोज्ना हुँकन्से लरी युवा हुँक्र

मेहनत करी केहिसे का कम कैख सक्कु थारु
आज लगैबी काल त पक्का फरी युवा हुँक्र


MK Kusumya
मानपुर २ दाङ

खेत्वम हर फर्वा

                       गजल
खेत्वम हर फर्वा छोर्ख आन्दोलन कर उठी
घरम जन्नी ठर्वा छोर्ख आन्दोलन कर उठी

हेराइबेर हमार थारूक बर्षौ पुराण पहिचान 
गोरु चह्री ऊ डर्वा छोर्ख आन्दोलन कर उठी

सामान्ती यी पापी सरकार ढलाइक्टे हम्र 
सावनक पानी गर्वा छोर्ख आन्दोलन कर उठी

कट्रा कर्ना पुजा पात सद्द घरम बैठ्ख केल
दिउटा भुट्वा मर्वा छोर्ख आन्दोलन कर उठी

आव छोर्र परल जाँर डाँरु थारू पिए बनाए 
बनैटी जाँर लर्वा छोर्ख आन्दोलन कर उठी 

राम पछलदङग्याँ अनुरागि
हेकुली ८ दाङ

Tuesday, 17 June 2014

निदेलस घरक मनै

संघारी हुँक्र असिन काम जिन कर्बी हाँ अप्न हुँक्र

गजल

निदेलसे घरक मनै छोर्देम कठु जाँरक भँक्री
कबुकाल रिस लग्था फोर्देम कठु जाँरक भँक्री

मै मटोर्‍या अस्त बातु जाँर निहोक निसेक्तु मै
देना बा त देओ नै त चोर्देम कठु जाँरक भँक्री

जाँर पिए निदेना फे क्याकर लाग बनैठ खै ?
निदेबो पिए महिँ किलकोर्देम कठु जाँरक भँक्री

केही देथ खै काजन सद्द बनैठ घरम  जाँर
बनाओ बिना छिप्ल हिरहोर्दे कठु जाँरक भँक्रेर

एम के कुसुम्य
मानपुर २ दानह्ग

Monday, 16 June 2014

थारू हुईटी थारू हम्र

गजल
थारू हुईटि थारू हम्र संस्कार बनाइ परी 
मिठ बोली चट्नीहसक चत्कार बनाइ परी ||

देखिना बाट हम्र यीहा थारू मधेशि निहुईटी 
आन्दोलन कर्ख सरकारन जान्कार बनाइ परी ||

हो हमार पानी बन्नो जग्गा जमिन थारूनक 
थारू संस्कृति पहिचानक झम्कार बनाइ परी ||

अब उठ प्रथा हम्र सुट्टल थारू झरफराखन 
यी सरकारन आव केरकार बनाइ परी ||

रमिता चौधरी मन्जरी


प्रकाशक : राम पछलदङग्याँ अनुरागि

हिन्दी बोल्क

मुक्तक 
हिन्दी बोल्क थारुन्हँक पहिचान खोज्ठो टु
आपन डाईहँ गर्याक संविधान खोज्ठो टु

खाटी मेटैना निहुँम फेरसे किल्कोर्लो
ईज्जत ट कहाँम हो कहाँ बदनाम खोज्ठो टु


Som Demandaura
प्रकाशक : राम पछलदङग्याँ अनुरागि

Friday, 13 June 2014

कुछु करे देउ

गजल

मधेसी कहता ई सरकार महि कुछ करे देउ
छोरो छोरो मोर दाई बाबा महिन लरे देउ

थारु लाटा गोंगा कनै अत्र दिन चुपाइल रनु
अब् हमार पहिचान छिन्ता मारे चहा मरे देउ

पहिले हमार जगा छिन्नै तबजाके कमैया कनै
अस्तेके पाछे करैती रहिँहि अब आघे सरे देउ

खेती पाती कर्के पल्ती आइल भुमीपुत्र थारु
अन्न धर्ना घरेक कोन्वाम भाला बर्छी धरे देउ

धिरेसे मेतैतिबा हमार थारुन्के अस्तित्व दाई
काल हमार कुछ्नै रहि आजुसे लागे भिँरे देउ

लाछु दंगौरा थारु
धनसिंहपुर ८रोहनिबोझिया (कैलाली)

कठि म्वार डाइ

गजल

त्वार लाग बठिन्या खोज्देरख्नु कठी म्वार दाइ
भारी मजा जेठिन्या खोज्देरख्नु कठी म्वार दाइ

बातक सिपार बोलीक माजा बाती कहत सुन्थु
बर्कान बाजेक नटिन्या खोज्देरख्नु कठी म्वार दाइ

बर्कान घरक स्त्र मित्र बातन हुँ रझ्याना म धेर
पटोइह्या रझिन्या खोज्देरख्नु कठी म्वार दाइ

लग्घु सस्रार नि मजा हुइत कठ सक्कु जा न
उह मार दुर सम्धिन्या खोज्देरख्नु कठी म्वार दाइ

एम के कुसुम्या
मानपुर २ दाङ

Thursday, 12 June 2014

गजल

थारू हुईटि थारू हम्र संस्कार बनाइ परी 
मिठ बोली चट्नीहसक चत्कार बनाइ परी ||

देखिना बाट हम्र यीहा थारू मधेशि निहुईटी 
आन्दोलन कर्ख सरकारन जान्कार बनाइ परी ||

हो हमार पानी बन्नो जग्गा जमिन थारूनक 
थारू संस्कृति पहिचानक झम्कार बनाइ परी ||

अब उठ प्रथा हम्र सुट्टल थारू झरफराखन 
यी सरकारन आव केरकार बनाइ परी ||

रमिता चौधरी मन्जरी

मुक्तक

अग्ला हर जनमफे थारुनके घरबार मे हुए |
बचपनके सक्कु सुसार थारु संस्कार मे हुए ||

तातेक दाई-बाबानके मैगर दुलार संगे-संगे |
पहिल बोलिक सुरुवात सजना, धमार मे हुए ||

---रामचन्द्र---
मुनुवा-४, कैलाली

थारू साहित्य

गजल

थारू साहित्य हरपल चाहल बा//
सक्कु क्षेत्र मसे पहल चाहल बा//

लगाइ बल मिल्के सक्कु युवाहुक्र,
देश हिलैना जोश प्रबल चाहल बा//

असिख बिल्ला जाइ गितबाँस् हमार,
बचाइक लागि मल/जल चाहल बा//

पुरुब पच्छिउँ से उत्तर दक्खिन से,
उच्च स्तरीय छलफल चाहल बा//

झट्ट उठि आपन गाउँ ठाँउ से हम्र,
आज थारू साँस्कृतिक दल चाहल बा//

सुरज बर्दियाली
‪#‎जय_थारू_साहित्य 

Wednesday, 11 June 2014

हमे थारू पुराण संस्कृति

*** थारु भाषामा गजल***

हमे थारु पुरान संस्कृति बचाईनामा लगे पर्ना बा!
सक्कु युवा युवाती हुक्रा एक जुत होके जगे पर्ना बा!!

कानमा तेल लगके चुपचाप नाई बाईथो थारु हुक्रे!
अपन हक अधिकार ई सरकार से मगे पर्ना बा!!

हम्रे हुईती थारु समाज तराईके आदीबसी हुक्रा!
हमार थारु समाज मानसे मधेसी हे भगे पर्ना बा!!

चट मग्नी पट भोज नकारो तुहारे थारु यवा हुक्रा!
हमार पुरान भोज जस्ते गोला जेउनास दगे पर्ना बा!!

नाई भुलाईहो अपन घरके मान मर्यादा गोही गोचा!
थरुनके घर-घरमा फेरुवं भौका तगे पर्ना बा!!

"""""टेट राम चौधरी प्रदेसी""""
               बर्दिया सोनपुर
                हाल मलेशिया

बिभिन्न थारू साहित्यकार क गजल

________गजल__________
साहित्यम से संस्कृति जगिना हो सँघारी|
पुर्खनक पुराण पहिचान बचिना हो सँघारी||

हातम हात ढर्ख मिल्ख हम्र सक्कु सँघारी|
समाजम रहल कुरिती हतिना हो सँघारी||

छाईन फे छावक जस्त पर्ह स्कुल पठाई |
छाई छावा बराबर सम्झिना हो सँघारी||

आधुनिक जमानाम सज्ना मैना गित खोस्टि|
बर्किमार व धुम्रु गित बजिना हो सँघारी||

हेराइट भाषा संस्कृति पहिचान कहाँ पैबी|
गित गजल कविताम लिखिना हो सँघारी||


राम पछलदङग्याँ अनुरागि
हेकुली ८ दाङ

गजल
पहिचानके बात करती नारुको अब थारु युवा |
अपन अस्तित्व लुटाए नाझुको अब थारु युवा || 

हेरैती जाइता हमार थारु भाषा, कला, संस्कृति | 
अपन संस्कृति बचाए नाचुको अब थारु युवा || 

पुर्खनके देहल छुट्टै हमार गीतबाँस थारुनके | 
थारुभाषा बेल्सेफे पाला नाढुको अब थारु युवा || 

गाउँशहर, बस्ती-बस्तीसे उठो थारु हुक्रे हाली |
थारु इतिहास चिन्हाई नानुको अब थारु युवा || 

---रामचन्द्र---
मुनुवा-४, कैलाली


गजल
अापन थारू कला सँस्कृति बचाइ परठ गाेचाली
अापन गीतबाँस नाचकाेर म रमाइ परठ गाेचाली

पुरान रितिरिवाज नै बिस्रैना हाे हम्र सक्कु जान
गाेन्या चाेल्या लेँहँगा बुलुज लगाइ परठ गाेचाली

हिन्दी अँग्रेजी डिस्काेम जिन लागाे थारू युवाहुक्र
गाउँ घरम हुर्दुङग्वा झुम्रा नाच कराइ परठ गाेचाली

पुर्खाैली धर्म सँस्कृति बचैना सक्कुहनके कर्तब्य हाे
लाैवा अइना पुस्तानके लाग रखाइ परठ गाेचाली

अापन पहिरन पहिचान देखैना लाज जिन मानाे
हमार सँस्कृति यिह हाे कैके बताइ परठ गाेचाली

सेबेन्द्र कुशुम्या
हसुलिया कैलाली


गजल 

पुर्खासे चलती आइल हमर रीती मिलके बचाइन बा !
संसकृतिके धनि थारू हुई हमरे मिलके बताइन बा !!

तराई बसी भूमि पुत्र हुई हमरे हमर अपन पहिचान बा !
अंतराश्त्रियामा थारुनके परामपरा मिलके झलकाइन बा !!

थरिक थरिक भेष भूषा बा फरक हमर भाषा !
हमरे थारू एक हुइति संसारमा मिलके देखाइन बा !!

थारुनके बरका तिउहार माघमा छोकरा नाच नाचना !
कतरा सुघुर हमर चालचलन जोगई मिलके मनाइन बा !!

गोन्य ,चोली ,टिकली , बिलोज , सुट्या गर्गाहना !
परामपरा रीती रिवाज आइना पीडी हिन् जनाइन बा !!

अमिन कुमार थारू
हाल मलेशिया
बर्दिया बनिया भार
बेलवा बज्जा ६
 

गजल
छाइ छावन बोर्डिङ स्कुल दारी गोंचाली
पह्राइ लिखाइ बनाइ बरा भारी गोंचाली 

निपहर्नु ठग्वा पैनु नस्से कठ हमार बाज्या
निक्रैनाबा लिह्याइल खेत्वा बारी गोंचाली

काम करुइया हम्र थारु खउइया जुन और 
असीन शासन बरदुर आब सारी गोंचाली

MK Kusumya

मानपुर २ दाङ


गजल
टुँहीन समज समज कन आँस झरीनु
सद्द भर रुईती रना कसिन मैयाँ लगीनु

फुला अस फुल बा हामार च्वाखा मैयाँ
टेलार बोली बोल्ख आपन दिलम सजीनु

जहाँ गैल सेफे तुहाँ पाँछ लाग नि छोरम हेरो
जत्रा घ्रीणा कर्लो त फे मैगर साहारा बनिनु

तुलसीपुरक ॐ शान्ती म फिलीम ह्यार ब्याला
हिरो हिरोनिन जस्त फँसीठ ओस्त कन फसीनु

च्वाखा मैयाँ करल म संखा केल काजे कर्ठो
म्वा मैयँन संखा कर्लो त न कर्र से गरीनु

अजित चौधरी
दाङ्ग हलवार
हाल दु:खद संसार
 



गजल 
सक्कुज आब कलम चलाइ थारु भाषा साहित्य म /
स्याकल सहभागिता जनाइ थारु भाषा साहित्य म //

कौनो जन गजल मुक्तक हस्योली ठट्योली लिखी /
गित कबिता कथा ले भराइ थारु भाषा साहित्य म //

रुक्टि जैना सुख्टि हेरइना नाही हम्र मुल बनपरल/
भाषिक शब्द सागर बहाइ थारु भाषा साहित्य म //

पुर्खा हुक्र अग्रज हुँक्र आघ सर्ख नेङ्ग्ना /
अइना पिढिन डगर देखाइ थारु भाषा साहित्री म //

शिक्षा डेना सन्देश डेना लिख परल सक्कुजन /
अधिकार के आवाज उठाइ थारु भाषा साहित्य म //

बुद्धिराम चौधरी
डुरुवा ६ धमकापुर दाङ्ग नेपाल


गजल
थारून मधेसीम सटाखन बरा जिन बन सरकार/
हमार पहिचान घटाखन बरा जिन बन सरकार //

आपन अधिकार पाइक्लाग नारी कर बेर आन्दोलन /
हाँठ ओ गोरवाले लटाखन बरा जिन बन सरकार //

दुनियाँ जन्टिबाट हिलाकिचा खैटि बाटी हाम्र रातदिन /
ग्वारक धुरफेर चटाखन बरा जिन बन सरकार //

सिपार रठ थारू मिलखन बैस्ना हँस्ना खेल्ना कामकर्ना/
पैसाले थारू थारू फटाखन बरा जिन बन सरकार //

कबुनी हाँठ डोस्ना खैना डेओ कैख आज यीहे मनैनक //
रहल सारा बस्ती हटाखन बर जिन बन सरकार //

"निष्ठुरी " चिज चौधरी
धनौरी ८ दाङ्ग
आब:- दु:खद् संसार।




गजल

रानी रहो टुँ महलके प्रेमरानिक रुवाप खोज्नु
छोरगैलो महि आज तोहार पाईलक छाप खोज्नु

छाती भर्केतो आगीक ज्वालारहै दम्कती भहरैती
आँच नैपुगल तोहार बचनके तातुल राप खोज्नु

टुँ कहाँ सोन् सुन्दरी मै कहाँ भुलाईल् बद्रीअसक
भुल्के ईबाट मै जोन्हिया घामके मिलाप खोज्नु

नाइ रोइम कहीके फुलल फुलासे सम्झौता कर्के
सवानीया बद्रीसे आँस नाई झर्ना सुझाप खोज्नु

टोपतुँतो आगी खोलतुँतो धुँवाँ बन्जाईता इ मैया
ईऊर्ती गैल धुँवाँमे तोहार छुवाईक अभाप खोज्नु


लक्षु दगैरा थारू
कैलाली

गजल
जारसगं खाइक,लाग मच्छी मार चोलो!
आपन व़ दाइक,लाग मच्छी मार चोलो!

घरम बुह्रा बाबा फे खाईना मन करत,
जन्नी व़ छाइक, लाग मच्छी मार चोलो!

दान्चेक केल हुइलसे फेन उपहाँर लेक,
ससुरार जाइक, लाग मच्छी मार चोलो! 

लघ्घ बा मामाके घरपाहुनी खाई जिनाहो,
ताजा ताजा माइक,लाग मच्छी मार चोलो!

रोज कत्ता खाइबो कपुव़ा व़ चटनी भात ,
दोसर स्वाद पाइक,लाग मच्छी मार चोलो!

सकीए हो माँघक पिली गुरी गुरी जार,
अइसीन गित गाइक,लाग मच्छी मार चोलो!

नारायण मगर

हलोवार दाङ


गजल

घिच्ना केल काम बा म्वार कुछु कर निसेक्नु
आपन छुच्छ घरम सम्पतिले भर निसेक्नु ।

संघक संघरेन आपन आपन ठाउ लागसेक्ल
मै अभागि घरसेन अन्त तह्र निसेक्नु ।

गन्ज्वा त भैगिनु पह्र पथैलसे गोलि खेल्ना
उहो मार त हुइ कहो फे आघ बह्र निसेक्नु ।

मनैन अफिस जाइत देखथु त पछुतो लगथा
पस्ताख काकर्नाहो आपन्हे पह्र निसेक्नु ।

सायद पृथ्विक भारकेल हुइतु मै त
कुछु कैख समाजम नाउ ढर निसेक्नु ।

चन्द्र बिबस अनुरागि 

दाङ
( हाल मलेसिया)

गजल  हमे थारु पुरान संस्कृति बचाईनामा लगे पर्ना बा!
सक्कु युवा युवाती हुक्रा एक जुत होके जगे पर्ना बा!!

कानमा तेल लगके चुपचाप नाई बाईथो थारु हुक्रे!
अपन हक अधिकार ई सरकार से मगे पर्ना बा!!

हम्रे हुईती थारु समाज तराईके आदीबसी हुक्रा!
हमार थारु समाज मानसे मधेसी हे भगे पर्ना बा!!

चट मग्नी पट भोज नकारो तुहारे थारु यवा हुक्रा!
हमार पुरान भोज जस्ते गोला जेउनास दगे पर्ना बा!!

नाई भुलाईहो अपन घरके मान मर्यादा गोही गोचा!
थरुनके घर-घरमा फेरुवं भौका तगे पर्ना बा!!

"""""टेट राम चौधरी प्रदेसी""""
बर्दिया सोनपुर
हाल मलेशिया
 

गजल

बाट उठ्गिल कचेरी जुट्गील तुँह कहाँ रहो
सिन्नी लुट्गिल सतुवा बंट्गील तुँह कहाँ रहो॥

कोइ लुतैनैई भुजा बतासा कोई जोबनवा हेरो
बजार उठ्गिल लौटङंकी छुट्गील तुँह कहाँ रहो॥

मछरमरूवा जाला खेलुइया ऐ जल हेरूवा
रोईनी लहरागिल लदिया घट्गील तुँह कहाँ रहो॥

कतरा हेरनु असरा मैं तोहार अईना डगरक
असरा मरगिल मैंया संट्गील तुँह कहाँ रहो॥

बहुत सपना सजाईल रहुँ संग हास्ना खेल्ना
मनके रहर मेट्गिल घाउ पंट्गील तुँह रहो॥ 

Anurag sair "darhiwala" 
khata bardiya

गजल

बहल आश झरी त रुइनु
छाती बथाइल आगि सरि त रुइनु !

स्वार्थी हुइल सन्सार कि निम्ती क्याकर
आश भरल गह भरी त रुइनु !

हेलाहा बनाइल छितिज घामले फे
ब्याथक सयो चोत मरिमरी त रुइनु !

प्रत्येक थोपा पानी कि यातनक शहरम
बियोगान्तक धुन परि त रुइनु !

रमेता हेर्थ यि कलेजिक थेसम
सहना गाह्रो व थल परि त रुइनु !!

बाबु बसन्त
हेकुली ३ दाङ नेपाल

गजल
काजे फेरसे यी असार आइल//
याद बन्के कोइ बौछार आइल//

बाझल बाटुँ की मैयाँ जालम मै,
हर बोलीम् नाउँ तोंहार आइल//

सावनिया झरिम टुँ मै भिज्लक,
सम्झना बन्के लगातार आइल//

भुलाइ नि सेक्ठुँ बर्खामास छैली,
दम बह्रैना बन्के बिमार आइल//

खेल्लक हर्दाह्वा दुनुजे हिलम,
झल्झल्टी मनम दिन्धार आइल//

सुरज बर्दियाल
बरदिया नेपाल 



आरके स्वागत



देश ओ जनतन्के कहानी खराब बा
समृद्ध देश विकासके बिहानी खराब बा

उमेर आइठ एकचो पत्थर फोर्ना मेर
बेरोजगार युवन्के जवानी खराब बा

रहर नै हो केक्रो बिदेशी भूमिमे जैना
गाउँ परिवेश सब्के राहदानी खराब बा

करे डेउ की मरे डेउ कहटी बटाँ यहाँ
मरमनदुरके पस्ना आम्दानी खराब बा

मेची कोशी, सगरमाथा सिक्चटी जाइटा
जनकपुरधाम, बुद्ध भवानी खराब बा

गोबरडिहा–६,देउखर,दाङ

मजा काम फे

गजल

मजा कान फे चिर्ख जोग्या बन्तु मै
हर्ड्यार झ्वाला भिर्ख जोग्या बन्तु मै

सद्द भर ठार मुन्ती लगाख नेङ्ना मनै
हुँकनक नजर से गिर्ख जोग्या बन्तु मै

बातक उप्पर केल मैयाँ कर्ना मनैयक
वाकर मैयक म्वाल तिर्ख जोग्या बन्तु मै

मैंगर च्वाखा मैयाँ देनु उह फे छ्वारल उ त
रेस्टुरेन्ट व भट्टी म छिर्ख जोग्या बन्तु मै

Mk kusumya
मानपुर २ दाङ

Tuesday, 10 June 2014

यी जिन्दगीसे

गजल
यी जिन्दगीसे हार स्याकल बाटु
बच्ना चाहना मार स्याकल बाटु||

कत्रा सहना दुख पिर सद्द भर
 आखक आश् झार स्याकल बाटु||

तुहिन आपन बनिना चाहा मुवलत
मनैन् गर्ना गरेम डार स्याकल बाटु||

सपना चक्ना चुर होख फुट्टल म्वा
सजाइल सप्ना फार स्याकल बाटु||

अन्धर्या रात जसिन जीवन बाट
मुवना दिन वार चार स्याकल बाटु||

राम पछलदग्याँ अनुरागि
हेकुली ८ दाङ

Monday, 9 June 2014

थारू भाषा साहित्य म

गजल
सक्कुज आब कलम चलाइ थारु भाषा साहित्य म /
स्याकल सहभागिता जनाइ थारु भाषा साहित्य म //

कौनो जन गजल मुक्तक हस्योली ठट्योली लिखी /
गित कबिता कथा ले भराइ थारु भाषा साहित्य म //

रुक्टि जैना सुख्टि हेरइना नाही हम्र मुल बनपरल/
भाषिक शब्द सागर बहाइ थारु भाषा साहित्य म //

पुर्खा हुक्र अग्रज हुँक्र आघ सर्ख नेङ्ग्ना /
अइना पिढिन डगर देखाइ थारु भाषा साहित्री म //

शिक्षा डेना सन्देश डेना लिख परल सक्कुजन /
अधिकार के आवाज उठाइ थारु भाषा साहित्य म //

बुद्धिराम चौधरी 
डुरुवा ६ धमकापुर दाङ्ग नेपाल

Sunday, 8 June 2014

पहिचानके बात करती

गजल 

पहिचानके बात करती नारुको अब थारु युवा |
अपन अस्तित्व लुटाए नाझुको अब थारु युवा || 

हेरैती जाइता हमार थारु भाषा, कला, संस्कृति | 
अपन संस्कृति बचाए नाचुको अब थारु युवा || 

पुर्खनके देहल छुट्टै हमार गीतबाँस थारुनके | 
थारुभाषा बेल्सेफे पाला नाढुको अब थारु युवा || 

गाउँशहर, बस्ती-बस्तीसे उठो थारु हुक्रे हाली |
थारु इतिहास चिन्हाई नानुको अब थारु युवा || 

---रामचन्द्र---
मुनुवा-४, कैलाली

Thursday, 5 June 2014

मुक्तक



निष्ठुरीक मैयम फस्ख रुइती बाटु
समाज मसे तर खस्ख रुइती बाटु

मानल रनहुँ आपन जिन्दगी तुहिँन
आपन मनै छुरी धस्ख रुइती बाटु

Mk Kusumya
मानपुर २ दाङ

सच्चा मैया निमिल्नमा

गजल
सच्चा मैया निमिल्नमा बोलका का करू हजूर
मनके बात तोहर समु खोलका का करू हजूर

और्जनक मनाई तुह और्जनक रहबो सद्दा
दुई दिनमा तुताजिना नाता जोरका का करू हजूर

च्यातिंग करता करता तुहिसे मैया बैस्जाई ता
ई मुटुमा ओसिन मैया घोलका का करू हजूर

ख़ुशी हुई नि सेकम मई तोहर झूठा मैया पक
भरका फे खाली होजिना झोलका का करू हजूर

अपना मनाई समझक सच्चा मैया कर्लासे फे
बद्लामा अपना मुतु पोलका का करू हजूर

अमिन कुमार थारू
हाल मलेशिया
बर्दिया बनिया भार
बेलवा बज्जा ६

थारू फिल्म

दंङगाली थारू नाच

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थारून मधेसीम सटाखन

गजल 
थारून मधेसीम सटाखन बरा जिन बन सरकार/
हमार पहिचान घटाखन बरा जिन बन सरकार //

आपन अधिकार पाइक्लाग नारी कर बेर आन्दोलन /
हाँठ ओ गोरवाले लटाखन बरा जिन बन सरकार //

दुनियाँ जन्टिबाट हिलाकिचा खैटि बाटी हाम्र रातदिन /
ग्वारक धुरफेर चटाखन बरा जिन बन सरकार //

सिपार रठ थारू मिलखन बैस्ना हँस्ना खेल्ना कामकर्ना/
पैसाले थारू थारू फटाखन बरा जिन बन सरकार //

कबुनी हाँठ डोस्ना खैना डेओ कैख आज यीहे मनैनक //
रहल सारा बस्ती हटाखन बर जिन बन सरकार //

"निष्ठुरी " चिज चौधरी
धनौरी ८ दाङ्ग
आब:- दु:खद् संसार।

Monday, 2 June 2014

सच्चा प्रेम कैके फे आज

             गजल

सच्चा प्रेम कैके फे आज मोर नाउ बद'नाम हुईल!
निस्थुरी हे समझके बैठ्ना हर दिनके काम हुईल!!

जिन्दागीमा तुह मिहिन अकेली परलो छोरके आज!
मोर ई जीबन बद्रीक भित्तर नुकाल घाम हुईल!!

बिछोडके जलनमा जित्ती लश जिएक परल मिहि!
मोर लगि इहे जिन्दगी मशन घटके ठाम हुईल!!

अब जिउँ कैसिके मोर जिन्दगीक कोनो अर्थ फे नहो!
लगठ इ मोर जिबन चिरल पन्नक खाम हुईल!!

धोखा पिडा से छेदबिच्छेद मन मुटु हुईती बा आज!
कैसिके कहु पत्तै नि पाईनु मोर जिन्दगी जाम हुईल!!

टेट राम चौधरी (प्रदेशी)
बर्दिया मगरागादी ५ सोनपुर
हाल मलेशिया

Sunday, 1 June 2014

कम्जाेर समझके

........गजल....

कम्जाेर समझके थारूनके घेँचा डबाइटँ ।
शिकार मच्छी समझके जित्टिहँ खाइटँ ।।

पहिचान हमार चाेरा सेकल यी सरकार ।
बिना पहिचानके हमन मधेशी बनाइटँ ।।

हमार भाषा संस्कृति पहिचान अलग बा ।
तबु फे हमन थारून मधेशी कैख बलाइटँ ।।

अादिवासी भुमिपुत्र हुइति हम्र सक्कु थारू ।
जबरजस्ती मधेशीनके काेटाम सराइटँ ।।

अापन गाउँ ठाउँसे उठाे थारू सक्कु जाने ।
हमन थारून मधेशीनके जालम फसाइटँ ।।

सेबेन्द्र कुसुम्या, हसुलिया ८ कैलाली