........गजल....
कम्जाेर समझके थारूनके घेँचा डबाइटँ ।
शिकार मच्छी समझके जित्टिहँ खाइटँ ।।
पहिचान हमार चाेरा सेकल यी सरकार ।
बिना पहिचानके हमन मधेशी बनाइटँ ।।
हमार भाषा संस्कृति पहिचान अलग बा ।
तबु फे हमन थारून मधेशी कैख बलाइटँ ।।
अादिवासी भुमिपुत्र हुइति हम्र सक्कु थारू ।
जबरजस्ती मधेशीनके काेटाम सराइटँ ।।
अापन गाउँ ठाउँसे उठाे थारू सक्कु जाने ।
हमन थारून मधेशीनके जालम फसाइटँ ।।
सेबेन्द्र कुसुम्या, हसुलिया ८ कैलाली
कम्जाेर समझके थारूनके घेँचा डबाइटँ ।
शिकार मच्छी समझके जित्टिहँ खाइटँ ।।
पहिचान हमार चाेरा सेकल यी सरकार ।
बिना पहिचानके हमन मधेशी बनाइटँ ।।
हमार भाषा संस्कृति पहिचान अलग बा ।
तबु फे हमन थारून मधेशी कैख बलाइटँ ।।
अादिवासी भुमिपुत्र हुइति हम्र सक्कु थारू ।
जबरजस्ती मधेशीनके काेटाम सराइटँ ।।
अापन गाउँ ठाउँसे उठाे थारू सक्कु जाने ।
हमन थारून मधेशीनके जालम फसाइटँ ।।
सेबेन्द्र कुसुम्या, हसुलिया ८ कैलाली
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