Wednesday, 11 June 2014

बिभिन्न थारू साहित्यकार क गजल

________गजल__________
साहित्यम से संस्कृति जगिना हो सँघारी|
पुर्खनक पुराण पहिचान बचिना हो सँघारी||

हातम हात ढर्ख मिल्ख हम्र सक्कु सँघारी|
समाजम रहल कुरिती हतिना हो सँघारी||

छाईन फे छावक जस्त पर्ह स्कुल पठाई |
छाई छावा बराबर सम्झिना हो सँघारी||

आधुनिक जमानाम सज्ना मैना गित खोस्टि|
बर्किमार व धुम्रु गित बजिना हो सँघारी||

हेराइट भाषा संस्कृति पहिचान कहाँ पैबी|
गित गजल कविताम लिखिना हो सँघारी||


राम पछलदङग्याँ अनुरागि
हेकुली ८ दाङ

गजल
पहिचानके बात करती नारुको अब थारु युवा |
अपन अस्तित्व लुटाए नाझुको अब थारु युवा || 

हेरैती जाइता हमार थारु भाषा, कला, संस्कृति | 
अपन संस्कृति बचाए नाचुको अब थारु युवा || 

पुर्खनके देहल छुट्टै हमार गीतबाँस थारुनके | 
थारुभाषा बेल्सेफे पाला नाढुको अब थारु युवा || 

गाउँशहर, बस्ती-बस्तीसे उठो थारु हुक्रे हाली |
थारु इतिहास चिन्हाई नानुको अब थारु युवा || 

---रामचन्द्र---
मुनुवा-४, कैलाली


गजल
अापन थारू कला सँस्कृति बचाइ परठ गाेचाली
अापन गीतबाँस नाचकाेर म रमाइ परठ गाेचाली

पुरान रितिरिवाज नै बिस्रैना हाे हम्र सक्कु जान
गाेन्या चाेल्या लेँहँगा बुलुज लगाइ परठ गाेचाली

हिन्दी अँग्रेजी डिस्काेम जिन लागाे थारू युवाहुक्र
गाउँ घरम हुर्दुङग्वा झुम्रा नाच कराइ परठ गाेचाली

पुर्खाैली धर्म सँस्कृति बचैना सक्कुहनके कर्तब्य हाे
लाैवा अइना पुस्तानके लाग रखाइ परठ गाेचाली

अापन पहिरन पहिचान देखैना लाज जिन मानाे
हमार सँस्कृति यिह हाे कैके बताइ परठ गाेचाली

सेबेन्द्र कुशुम्या
हसुलिया कैलाली


गजल 

पुर्खासे चलती आइल हमर रीती मिलके बचाइन बा !
संसकृतिके धनि थारू हुई हमरे मिलके बताइन बा !!

तराई बसी भूमि पुत्र हुई हमरे हमर अपन पहिचान बा !
अंतराश्त्रियामा थारुनके परामपरा मिलके झलकाइन बा !!

थरिक थरिक भेष भूषा बा फरक हमर भाषा !
हमरे थारू एक हुइति संसारमा मिलके देखाइन बा !!

थारुनके बरका तिउहार माघमा छोकरा नाच नाचना !
कतरा सुघुर हमर चालचलन जोगई मिलके मनाइन बा !!

गोन्य ,चोली ,टिकली , बिलोज , सुट्या गर्गाहना !
परामपरा रीती रिवाज आइना पीडी हिन् जनाइन बा !!

अमिन कुमार थारू
हाल मलेशिया
बर्दिया बनिया भार
बेलवा बज्जा ६
 

गजल
छाइ छावन बोर्डिङ स्कुल दारी गोंचाली
पह्राइ लिखाइ बनाइ बरा भारी गोंचाली 

निपहर्नु ठग्वा पैनु नस्से कठ हमार बाज्या
निक्रैनाबा लिह्याइल खेत्वा बारी गोंचाली

काम करुइया हम्र थारु खउइया जुन और 
असीन शासन बरदुर आब सारी गोंचाली

MK Kusumya

मानपुर २ दाङ


गजल
टुँहीन समज समज कन आँस झरीनु
सद्द भर रुईती रना कसिन मैयाँ लगीनु

फुला अस फुल बा हामार च्वाखा मैयाँ
टेलार बोली बोल्ख आपन दिलम सजीनु

जहाँ गैल सेफे तुहाँ पाँछ लाग नि छोरम हेरो
जत्रा घ्रीणा कर्लो त फे मैगर साहारा बनिनु

तुलसीपुरक ॐ शान्ती म फिलीम ह्यार ब्याला
हिरो हिरोनिन जस्त फँसीठ ओस्त कन फसीनु

च्वाखा मैयाँ करल म संखा केल काजे कर्ठो
म्वा मैयँन संखा कर्लो त न कर्र से गरीनु

अजित चौधरी
दाङ्ग हलवार
हाल दु:खद संसार
 



गजल 
सक्कुज आब कलम चलाइ थारु भाषा साहित्य म /
स्याकल सहभागिता जनाइ थारु भाषा साहित्य म //

कौनो जन गजल मुक्तक हस्योली ठट्योली लिखी /
गित कबिता कथा ले भराइ थारु भाषा साहित्य म //

रुक्टि जैना सुख्टि हेरइना नाही हम्र मुल बनपरल/
भाषिक शब्द सागर बहाइ थारु भाषा साहित्य म //

पुर्खा हुक्र अग्रज हुँक्र आघ सर्ख नेङ्ग्ना /
अइना पिढिन डगर देखाइ थारु भाषा साहित्री म //

शिक्षा डेना सन्देश डेना लिख परल सक्कुजन /
अधिकार के आवाज उठाइ थारु भाषा साहित्य म //

बुद्धिराम चौधरी
डुरुवा ६ धमकापुर दाङ्ग नेपाल


गजल
थारून मधेसीम सटाखन बरा जिन बन सरकार/
हमार पहिचान घटाखन बरा जिन बन सरकार //

आपन अधिकार पाइक्लाग नारी कर बेर आन्दोलन /
हाँठ ओ गोरवाले लटाखन बरा जिन बन सरकार //

दुनियाँ जन्टिबाट हिलाकिचा खैटि बाटी हाम्र रातदिन /
ग्वारक धुरफेर चटाखन बरा जिन बन सरकार //

सिपार रठ थारू मिलखन बैस्ना हँस्ना खेल्ना कामकर्ना/
पैसाले थारू थारू फटाखन बरा जिन बन सरकार //

कबुनी हाँठ डोस्ना खैना डेओ कैख आज यीहे मनैनक //
रहल सारा बस्ती हटाखन बर जिन बन सरकार //

"निष्ठुरी " चिज चौधरी
धनौरी ८ दाङ्ग
आब:- दु:खद् संसार।




गजल

रानी रहो टुँ महलके प्रेमरानिक रुवाप खोज्नु
छोरगैलो महि आज तोहार पाईलक छाप खोज्नु

छाती भर्केतो आगीक ज्वालारहै दम्कती भहरैती
आँच नैपुगल तोहार बचनके तातुल राप खोज्नु

टुँ कहाँ सोन् सुन्दरी मै कहाँ भुलाईल् बद्रीअसक
भुल्के ईबाट मै जोन्हिया घामके मिलाप खोज्नु

नाइ रोइम कहीके फुलल फुलासे सम्झौता कर्के
सवानीया बद्रीसे आँस नाई झर्ना सुझाप खोज्नु

टोपतुँतो आगी खोलतुँतो धुँवाँ बन्जाईता इ मैया
ईऊर्ती गैल धुँवाँमे तोहार छुवाईक अभाप खोज्नु


लक्षु दगैरा थारू
कैलाली

गजल
जारसगं खाइक,लाग मच्छी मार चोलो!
आपन व़ दाइक,लाग मच्छी मार चोलो!

घरम बुह्रा बाबा फे खाईना मन करत,
जन्नी व़ छाइक, लाग मच्छी मार चोलो!

दान्चेक केल हुइलसे फेन उपहाँर लेक,
ससुरार जाइक, लाग मच्छी मार चोलो! 

लघ्घ बा मामाके घरपाहुनी खाई जिनाहो,
ताजा ताजा माइक,लाग मच्छी मार चोलो!

रोज कत्ता खाइबो कपुव़ा व़ चटनी भात ,
दोसर स्वाद पाइक,लाग मच्छी मार चोलो!

सकीए हो माँघक पिली गुरी गुरी जार,
अइसीन गित गाइक,लाग मच्छी मार चोलो!

नारायण मगर

हलोवार दाङ


गजल

घिच्ना केल काम बा म्वार कुछु कर निसेक्नु
आपन छुच्छ घरम सम्पतिले भर निसेक्नु ।

संघक संघरेन आपन आपन ठाउ लागसेक्ल
मै अभागि घरसेन अन्त तह्र निसेक्नु ।

गन्ज्वा त भैगिनु पह्र पथैलसे गोलि खेल्ना
उहो मार त हुइ कहो फे आघ बह्र निसेक्नु ।

मनैन अफिस जाइत देखथु त पछुतो लगथा
पस्ताख काकर्नाहो आपन्हे पह्र निसेक्नु ।

सायद पृथ्विक भारकेल हुइतु मै त
कुछु कैख समाजम नाउ ढर निसेक्नु ।

चन्द्र बिबस अनुरागि 

दाङ
( हाल मलेसिया)

गजल  हमे थारु पुरान संस्कृति बचाईनामा लगे पर्ना बा!
सक्कु युवा युवाती हुक्रा एक जुत होके जगे पर्ना बा!!

कानमा तेल लगके चुपचाप नाई बाईथो थारु हुक्रे!
अपन हक अधिकार ई सरकार से मगे पर्ना बा!!

हम्रे हुईती थारु समाज तराईके आदीबसी हुक्रा!
हमार थारु समाज मानसे मधेसी हे भगे पर्ना बा!!

चट मग्नी पट भोज नकारो तुहारे थारु यवा हुक्रा!
हमार पुरान भोज जस्ते गोला जेउनास दगे पर्ना बा!!

नाई भुलाईहो अपन घरके मान मर्यादा गोही गोचा!
थरुनके घर-घरमा फेरुवं भौका तगे पर्ना बा!!

"""""टेट राम चौधरी प्रदेसी""""
बर्दिया सोनपुर
हाल मलेशिया
 

गजल

बाट उठ्गिल कचेरी जुट्गील तुँह कहाँ रहो
सिन्नी लुट्गिल सतुवा बंट्गील तुँह कहाँ रहो॥

कोइ लुतैनैई भुजा बतासा कोई जोबनवा हेरो
बजार उठ्गिल लौटङंकी छुट्गील तुँह कहाँ रहो॥

मछरमरूवा जाला खेलुइया ऐ जल हेरूवा
रोईनी लहरागिल लदिया घट्गील तुँह कहाँ रहो॥

कतरा हेरनु असरा मैं तोहार अईना डगरक
असरा मरगिल मैंया संट्गील तुँह कहाँ रहो॥

बहुत सपना सजाईल रहुँ संग हास्ना खेल्ना
मनके रहर मेट्गिल घाउ पंट्गील तुँह रहो॥ 

Anurag sair "darhiwala" 
khata bardiya

गजल

बहल आश झरी त रुइनु
छाती बथाइल आगि सरि त रुइनु !

स्वार्थी हुइल सन्सार कि निम्ती क्याकर
आश भरल गह भरी त रुइनु !

हेलाहा बनाइल छितिज घामले फे
ब्याथक सयो चोत मरिमरी त रुइनु !

प्रत्येक थोपा पानी कि यातनक शहरम
बियोगान्तक धुन परि त रुइनु !

रमेता हेर्थ यि कलेजिक थेसम
सहना गाह्रो व थल परि त रुइनु !!

बाबु बसन्त
हेकुली ३ दाङ नेपाल

गजल
काजे फेरसे यी असार आइल//
याद बन्के कोइ बौछार आइल//

बाझल बाटुँ की मैयाँ जालम मै,
हर बोलीम् नाउँ तोंहार आइल//

सावनिया झरिम टुँ मै भिज्लक,
सम्झना बन्के लगातार आइल//

भुलाइ नि सेक्ठुँ बर्खामास छैली,
दम बह्रैना बन्के बिमार आइल//

खेल्लक हर्दाह्वा दुनुजे हिलम,
झल्झल्टी मनम दिन्धार आइल//

सुरज बर्दियाल
बरदिया नेपाल 



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