गजल
जाँर छब्ना बन्कसिक छव्नी हुईपरी ।
सट्कीना जाँर आलुक चट्नी हुई परी ॥
टब अइठा स्वाद जाँर पिए बेर घरम ।जाँर दिहुईयाँ आपन जन्नी हुई परी ॥
मान समान बहुत कर्थ ससार जइलसे ।सिकार खाइबे सालक मङ्नी हुई परी ॥
हासि मजा फे कर्र प्रथा कभू काल ।
खिझिलसे गरीना बङठुठ्नी हुई परी ॥
राम पछलदङग्याँ अनुरागि
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